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बड़वानी

मेधा पाटकर बोलीं जमीनी हकीकत से दूर प्रधानमंत्री सरदार सरोवर पर फैला रहे भ्रम

पीएम मोदी के बयान पर डूब प्रभावितों में आक्रोश, संघर्ष की तैयारी में, बांध का पानी किसानों के बदले दिया जा रहा उद्योगपतियों को

बड़वानीJun 27, 2019 / 11:04 am

मनीष अरोड़ा

PM Modi statement on Sardar Sarovar dam

PM Modi statement on Sardar Sarovar dam

बड़वानी. सरदार सरोवर बांध को लेकर पीएम मोदी के बयान के बाद नर्मदा घाटी में इसका विरोध शुरू हो गया है। बुधवार को आंदोलन कार्यकर्ता और डूब प्रभावितों ने डूब गांव चिखल्दा में विरोध प्रदर्शन किया। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को झूठा करार देते हुए बताया कि बांध किसानों की खेती के लिए पानी, कच्छ, सौराष्ट्र और राजस्थान के सूखे इलाके में पीने का पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया था। अब बांध से किसानों के बदले 481 कंपनियों को दिया जा रहा है, जिसकी सूचि हमारे पास है।
मेधा पाटकर ने कहा सरदार सरोवर बांध में 139 मीटर तक जो पानी भरना है इसके लिए गुजरात सरकार और केंद्र की सरकार चाहती है कि मप्र पानी छोड़ता जाए, लेकिन मप्र और महाराष्ट्र को बांध से सिर्फ बिजली का ही लाभ मिलना है। जितनी बिजली का उत्पादन होगा, उसका 57 प्रतिशत मध्यप्रदेश को और महाराष्ट्र को 27 प्रतिशत मिलना है। आज न अपेक्षित बिजली पा रहे है और ना ही दोनों राज्यों में हजारों विस्थापितों का पुनर्वास पुरा हुआ हैं। मेधा पाटकर ने बताया कि हमें जो सूचियां मिली हैं उनके आंकड़े बताते हैं कि इस साल 2019 में जनवरी से मई महीने तक मात्र 223 मीलियन यूनिट बिजली बनी है, जो 15 सालों में सबसे कम है। हकीकत में मप्र के पास बिजली उत्पादन पर्याप्त है। गुजरात सरकार भी निजी कंपनियों से बिजली खरीद रही है और सरदार सरोवर बांध से बिजली बनाना टाल रही है। मेधा पाटकर ने बताया कि उनको सिर्फ कंपनियों के लिए पानी चाहिए, इसलिए कच्छ और सौराष्ट्र के किसान भी आक्रोशित हैं।

सरदार सरोवर बांध के संबंध मात्र भ्रम फैला रहे हैं
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि कुछ लोग सरदार सरोवर बांध के संबंध मात्र भ्रम फैला रहे हैं। इसके उलट असलियत में मोदीजी ने खुद लाभों का भ्रम फैलाया है। 2014 में 2019 मीलियन यूनिट बिजली बनी, 2015 में 2149 मीलियन यूनिट बिजली बनी, 2016 में 3200 मीलियन यूनिट बिजली बनी, तो फिर 2017 से बांध के 17 मीटर्स ऊंचाई के गेट बंद होने के बाद भी बिजली का निर्माण कम क्यों होता गया। उन्होंने कहा कि नई सरकार इस ओर ध्यान नहीं देगी तो नर्मदा घाटी संघर्ष के लिए तैयार है।
रेत खनन से खत्म हो रही है नर्मदा
वहीं रेत खनन पर मेधा पाटकर ने बताया कि रेत खनन से यमुना नदी खत्म सी हो गई है। वहीं हाल वर्तमान में नर्मदा नदी का हो रहा है। सरदार सरोवर बांध के जलग्रहण क्षेत्र में 2015 से ही जबलपुर उच्च न्यायालय और हरित पर्यावरण न्यायाधिकरण ने रोक लगा रखी है। इसके बाद भी रेत खनन चल रहा है। पिछले दिनों छोटा बडदा में रेत खदान धंसने से पांच मजदूरों की मौत हो गई। रेत खनन के कारण पिछले कुछ सालों में सैकडों लोगों की मौतें हो चुकी है। राज्य सरकार ने समझना चाहिए नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है। जो पिछली सरकार ने किया वह इस सरकार ने नहीं करना चाहिए।

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