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दो साल पहले सैटेलाइट अस्पताल का दर्जा, सुविधाएं सीएचसी जैसी भी नहीं

असुविधाओं के कारण मरीज परेशान

बस्सीJun 18, 2018 / 11:24 pm

Surendra

Hospital facilities

दो साल पहले सैटेलाइट अस्पताल का दर्जा, सुविधाएं सीएचसी जैसी भी नहीं

चाकसू. दो साल पूर्व बजट में सरकार ने राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र चाकसू को सैटेलाइट अस्पताल का दर्जा तो दे दिया, लेकिन सुविधाओं में विस्तार नहीं किया। इससे मरीजों को आज भी चिकित्सा सुविधाओं के लिए दो-चार होना पड़ रहा है। अस्पताल का नाम जरूर बदल दिया गया, लेकिन सोनोग्राफी, डिजिटल एक्सरे सहित अन्य सुविधाएं नहीं होने से मरीज निजी सेंटरों पर जांच कराने को मजबूर है, जो अस्पताल के क्रमोन्नति को लेकर वाहवाही लूटने वाले जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदारों के मुंह पर तमाचा है।

जानकारी के अनुसार बजट घोषणा में सैटेलाइट का दर्जा दिए जाने के बाद क्षेत्र के लोगों को आस बंधी थी कि अब अस्पताल के दिन फिरेंगे और यहां सभी आवश्यक सुविधाएं मिलेगी। जयपुर के अस्पतालों में दौड़-भाग नहीं करनी पड़ेगी। दो साल बीत जाने के बाद अभी तक अस्पताल में सीएचसी स्तर की सोनोग्राफी भी शुरू नहीं होने से मरीज ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

सोनोग्राफी-डिजिटल एक्सरे की सुविधा नहीं


अस्पताल में सोनोग्राफी व डिजिटल एक्सरे की मशीन नहीं होने से निजी जांच केन्द्रों पर ये जांचे महंगे दामों में करवानी पड़ती है। जानकारी के अनुसार चिकित्सक यहां प्रतिदिन पचास से अधिक सोनोग्राफी व दो दर्जन के करीब डिजिटल एक्सरे मरीजों को लिख रहे हैं। लोगों का कहना है कि सैटेलाइट अस्पताल के बावजूद ये सुविधाएं नहीं होना क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की कमजोरी को दर्शाता है।

महिला रोगियों को होना पड़ता है शर्मिन्दा

अस्पताल में महिला चिकित्सक नहीं होने से महिला रोगियों को पुरुष चिकित्सकों से ही परामर्श लेना पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अधिक शर्मिन्दगी होती है। वह पुरुष चिकित्सक को समस्या नहीं बता पाती। वहीं चिकित्सक के कमरे में एक साथ सभी मरीजों के आने से महिलाओं व गुप्त रोगियों को सबके सामने अपनी परेशानी बतानी पड़ती है। लोगों की मांग है कि अस्पताल में महिला चिकित्सक हो और चिकित्सक के कमरे में एक-एक मरीज अन्दर जाए तो मरीज व चिकित्सक दोनों को सहूलियत रहेगी।
विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव

सैटेलाइट अस्पताल के बाद भी अस्पताल में हड्डी रोग, नाक, कान व गला रोग विशेषज्ञ सहित सर्जन के नहीं होने से मरीजों को जयपुर जाना पड़ता है। वहीं सर्जन आने से कई ऑपरेशन अस्पताल में हो सकते हैं। पथरी, अपेन्डिक्स आदि के लिए मरीजों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है। रात में भी एक ही चिकित्सक होने से मरीजों को परेशानी होती है।
दस साल से ब्लड बैंक बंद

यहां दस साल पहले ब्लड बैंक की स्थापना हुई थी, लेकिन संसाधनों के अभाव में वह शुरू नहीं हो सका। आज भी कक्ष के ताला लगा हुआ है। मरीजों को ब्लड के लिए जयपुर दौड़-भाग करनी पड़ती है। जिससे समय व धन की बर्बादी होती है। वहीं मरीजों को समय पर उपचार नहीं मिल पाता।
बेड बढ़े तो मिले राहत

अभी अस्पताल में 50 बेड है, कई बार मौसमी बीमारियों या बड़े सड़क हादसे के दौरान यह बेड की कमी खलती है। ऐसी स्थिति में एक बेड पर दो मरीजों को लिटाकर उपचार करना पड़ता है। इससे चिकित्सकों व नर्सिंगकर्मियों के साथ मरीज के परिजनों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

अन्य सुविधाओं का अभाव


अस्पताल में बेड पर चद्दर नहीं होने से मरीजों व प्रसूताओं को गद्दे पर ही लेटना पड़ रहा है। ऐसे में उनमें संक्रमण का खतरा बना रहता है। वहीं रात के समय गार्ड नहीं होने से अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे रहती है। अस्पताल में एक वाटर कूलर खराब होने से ठण्डे पानी की भी समस्या है।

पार्किंग शुल्क यातायात में रोड़ा


यहां अस्पताल के मुख्य द्वार के बाहर अवैध पार्किंग से परेशानी हो रहती है। हालांकि अस्पताल प्रशासन ने सुविधा के लिए पार्किंग का स्थान चिन्हित कर रखा है, मगर लोग पार्किंग शुल्क बचाने के चक्कर में बीच सड़क पर वाहन खड़ा कर जाते हंै। इससे यातायात व्यवस्था बिगडऩे के साथ जाम के चलते एम्बुलेंस को आपातकालीन वार्ड तक पहुंचने में परेशानी होती है।
इनका कहना है

ब्लड बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण हो गया है, शीघ्र यह शुरू हो जाएगा। सोनोग्राफी मशीन नहीं होने की जानकारी उच्चाधिकारियों को है। डिजिटल एक्सरे मशीन के लिए विधायक ने घोषणा कर रखी है। पार्किंग का स्थान चिन्हित है मगर लोग मानते नहीं। अन्य समस्याओं के लिए भी उच्चाधिकारियों को अवगत करवाया है।
डॉ. मुनेश जैन, प्रभारी, राजकीय सैटेलाइट अस्पताल चाकसू

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