साढ़े चार हजार की आबादी वाले गांव में हर दूसरे घर का बच्चा रावण का पुतला बनाना जानता है। इस गांव में रावण के पुतले बनाने की शुरुआत बिसौहाराम साहू ने की थी। तब उनके ही परिवार के लोमन सिंह साहू ने यह काम सीखा और आज इस परंपरा को स्व लोमन सिंह के बेटे डॉ जितेन्द्र साहू आगे बढ़ा रहे हैं। डॉ. जितेन्द्र बताते हैं कि गांव में सिर्फ रावण का पुतला बनाकर ही लगभग 25 लाख से ज्यादा का रेवेन्यु पहुंचता है।
डॉ. साहू के पास ही 12 से ज्यादा समितियों का आर्डर मिलता है। उनके बनाए रावण के पुतले भिलाई के अधिकांश दशहरा समितियों के मैदान में लगते हैं। इसके साथ ही रायपुर की समितियां भी उनके यहां से रावण का पुतला तैयार कराती थी। वे बताते हैं कि कुथरेल में रावण का पुतला बनाने वाले 50 से ज्यादा कलाकार है। वहीं अब गांव में बच्चों की एक पूरी फौज तैयार हो चुकी है जो 8 से 10 फीट तक के रावण के पुतले आसानी से बना लेते हैं। अंचल कुमार, कृष्णा साहू, राजू देशमुख, चरण जैसे कई युवा है जो अब परफेक्ट हो चुके हैं और आसपास के गांवों में जाकर दशहरा समिति के लिए पुतला तैयार करते हैं।
रावण के पुतले बनाने वाले इस गांव में दशहरा के अगले दिन सबसे ज्यादा पुतले भी जलते हैं। दशहरा पर गांव की हर गलियों में बच्चों की टोली एक रावण बनाकर तैयार रहती है और शाम 5 बजते ही जैसे रामलीला में राम की टोली वानर सेना साथ इन सभी पुतलों को जलाते हुए करीब 7 बजे मुख्य समारोह में पहुंचती है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा।