दो साल से परी सारी प्रताडऩा झेल रही थी, क्योंकि उसके दर्द को सुनने और समझने वाला कोई नहीं था। उसके गरीब माता-पिता ने एक ऐसे परिवार को उसे सौंप दिया था जिन्होंने उसे पढ़ाने के साथ ही घर के एक सदस्य की तरह रखने का झूठा वादा किया था। कक्षा तीसरी में पढऩे वाली इस मासूम को मंगलवार की दोपहर चाइल्ड लाइन की टीम ने रेस्क्यू किया।
चाइल्डलाइन को दो दिन से एक लड़की फोन कर इस मासूम की हालत बता रही थी। टीम को दो दिन के प्रयास के बाद आज सफलता मिली। पूछताछ के दौरान यह बच्ची अपने गांव का नाम भी नहीं बता पा रही। उसे सिर्फ इतना पता है कि बिलासपुर के पास कहीं उसका घर है। उसने यह भी बताया कि उसकी बड़ी बहन को भी माता-पिता ने किसी के घर भेज दिया है। वह दो साल से अपने घर भी
नहीं गई।
टीम ने रेस्क्यू किया तो उसके चेहरे पर जलने के निशान थे। पूछने पर परी ने बताया कि घर के काम में कोई गलती होने पर घर के लोग उसे बेल्ट से मारते थे और कई बार उसे चिमटे से भी जलाया। झाडू-पोंछा, बर्तन के अलावा उसे खाना बनाने को भी कहा जाता था। चाइल्ड लाइन की भारती बिसेन ने बताया कि इस लड़की को उनकी टीम ने स्कूल से रेस्क्यू किया। भारती ने बताया कि यह लड़की दो साल से यहां रह रही थी।
चाइल्ड लाइन की भारती ने बताया कि बच्ची के बारे में शिकायत मिलते ही वह अपनी टीम के चंद्रप्रकाश, ललिता पानिकर, महिला एवं बाल विकास विभाग की सीता कन्नौजे एवं सीमा यादव व अन्य सदस्यों के साथ सड़क 28 स्थित एक बिल्डिंग में पहुंची जो काफी जर्जर हो चुकी थी। निशानदेही के आधार पर उन्होंने उस घर का दरवाजा काफी खटखटाया पर किसी ने नहीं खोला।
फिर उन्हें पता चला कि वह बच्ची स्कूल जाती है तो उन्होंने मंगलवार को उसे स्कूल से रेस्क्यू किया। सदस्य सीडब्ल्यूसी दुर्ग विजितार्थ श्रीवास्तव ने बताया कि चाइल्ड लाइन ने बच्ची को पेश किया था, लेकिन सीडब्लूसी की महिला सदस्य उपस्थित नहीं थी, जिसकी वजह से आज बयान नहीं हो पाया है। बुधवार को इसका बयान लिया जाएगा और उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।