बच्ची के पिता ने बताया कि बेटी को मामूली खांसी थी इसलिए वे उसे 14 सितंबर को भिलाई के निजी अस्पताल लेकर गए। जहां डॉक्टर ने कहा कि हल्की खांसी है, डरने की बात नहीं दवाई दे रही इसे पिला देना। अगले दिन 15 सितंबर को पटवारी और कोटवार घर पहुंचे बच्ची को कोविड पॉजिटिव बताते हुए घर के अन्य सदस्यों के बारे में जानकारी लेने लगे। पिता ने बताया कि अचानक बेटी के कोरोना पॉजिटिव होने की सूचना मिलने से वे घबरा गए फिर उन्हें याद आया कि बच्ची का टेस्ट हुआ ही नहीं है। यही बात साबित करने करने के लिए उन्हें पांच घंटे तक लचर सरकारी व्यवस्था से लंबी लड़ाई लडऩी पड़ी।
बच्ची के पिता ने अंतत: धमधा ब्लाक के तहसीलदार को फोन लगाया उन्हें सारी घटना से अवगत कराया। तब तहसीलदार ने कहा कि हो सकती है कि कोई त्रुटि हुई होगी। तब जाकर पिता ने राहत की सांस ली। इस बीच गांव भर में मासूम के कोविड पॉजिटिव होने की बात आग की तरह फैल गई। बच्ची के पूरिवार सहित पूरा गांव कोरोना के डर से दशहत में दिखा। इस पूरे घटनाक्रम से व्यथित पिता ने कहा कि कोविड संकट में ऐसी लापरवाही किसी को भी भारी पड़ सकती है। अगर मैं नहीं लड़ता तो बच्ची को जबरदस्ती कोविड अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता। बिना संक्रमित हुए भी बच्ची के अस्पताल में रहने से पॉजिटिव होने का भय बना रहता। जो उसके स्वास्थ्य के लिए जानलेवा साबित हो सकता था।