छत्तीसगढ़ में नक्सल वारदातों की लंबी श्रृंखला में मानपुर-मदनवाडा़-कोरकोट्टी हमला के नाम से जाने जाने वाले वारदात को ९ साल हो रहे हैं। थम नहीं रहे वारदातों के बीच सबसे बड़ा सवाल है कि नक्सलवाद का नासूर न जाने कितने परिवारों को तबाह करेगा। कभी किसी मां की गोद सूनी होती है। कभी किसी की मांग का सिंदूर मिट जाता है। कभी किसी बच्चे के सिर से उसके पिता का साया उठ जाता है तो कभी कोई बहन रक्षाबंधन के दिन हाथ में राखी लिए अपने भाई का इंतजार करती रह जाती है।
12 जुलाई 2009। रविवार का दिन। सुबह छह बजे पहली खबर मानपुर से आती है कि मदनवाड़ा में नक्सलियों ने सुरक्षा बल के दो जवानों को गोली मार दी है। ये जवान शौच के लिए गए थे, तभी नक्सलियों ने उनको अपना निशाना बना लिया। आमतौर पर हर नक्सली घटना के बाद मौके पर पहुंचकर जवानों की हौसला-अफजाई करने वाले राजनांदगांव जिले के एसपी वीके चौबे तुरंत मानपुर के लिए कूच कर गए थे।
हम भी घटनास्थल की ओर जाने निकल गए थे। कुछ देर बाद खबर आई कि शहीदों का आंकड़ा बढ़ सकता है। मन विचलित हुआ। इसके बाद लगातार बुरी खबरें ही आती रहीं। एसपी वीके चौबे की गाड़ी पर नक्सलियों की फायरिंग की खबर भी आई। साथ ही यह भी कि एसपी चौबे नक्सलियों के एंबुश को पार कर सुरक्षित निकल गए हैं।
बीच बीच में खबर मिलती रही। हर खबर बुरी थी। जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर मानपुर पहुंचते ही खबर मिली कि कुछ जवानों के शव अस्पताल में लाए जा चुके हैं। अस्पताल में अफरा-तफरी का माहौल था। अंदर देखा तो एक दो नहीं दस बारह जवानों के शव। बिस्तर कम थे सो जमीन पर ही रख दिये गए थे। कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था।
सभी के चेहरे में दहशत थी। खबर बड़ी होती जा रही थी। मानपुर से बमुश्किल छह किलोमीटर दूर कोरकोट्टी में गोली चल ही रही थी। मानपुर अस्पताल में जवानों के शवों के आने का सिलसिला जारी था। दोपहर के करीब 12 बज गए थे। एसपी के एंबुश से निकलने की खबर के साथ यह भी खबर आई कि उनके ड्राइवर को गोली लग गई है। फिर पता चला कि एंबुश में फंसे जवानों की मदद के लिए एसपी चौबे फिर एंबुश में घुस गए हैं।
दोपहर के डेढ़ बज गए होंगे। मौके पर पहुंचने पर वहां एक बडा़ गड्ढा नजर आया। नक्सलियों ने सड़क के बीचो-बीच बारुदी सुरंग विस्फोट कर दिया था, ताकि मदद के लिए फोर्स न पहुंच पाए। गोलियों की आवाज थम गई थी। अब वहां सन्नाटा पसरा था। जवानों के शव उठाकर ट्रेक्टर में डाले जा रहे थे। आईजी मुकेश गुप्ता कीचड़ से लथपथ थे। वे लगातार निर्देश दिए जा रहे थे। कुछ देर बाद आई गुप्ता बात करने तैयार हुए। करीब 20 मिनट तक वो लगातार बोलते रहे। कहीं कहीं वो रूकते। खैर वो बोलते रहे। सिलसिलेवार पूरे घटनाक्रम को बयां करते रहे और आखिर में उन्होंने कहा, ‘नक्सलियों ने दोनों ओर से फायरिंग की, हमने भी जमकर मुकाबला किया, नक्सलियों को कडा़ टक्कर देते हुए एसपी साहब शहीद हो गए हैं।”
इस घटना में एसपी वीके चौबे के साथ निरीक्षक विनोद धु्रव, उप निरीक्षक धनेश साहू, उप निरीक्षक कोमल साहू, प्रधान आरक्षक गीता भंडारी, प्रधान आरक्षक संजय यादव, प्रधान आरक्षक जखरियस खलखो, आरक्षक रजनीकांत, आरक्षक लालबहादुर नाग, आरक्षक निकेश यादव, आरक्षक वेदप्रकाश यादव, आरक्षक श्यामलाल भोई, आरक्षक बेदूराम सूर्यवंशी, आरक्षक लोकेश छेदैया, आरक्षक अजय भारव्दाज, आरक्षक सुभाष बेहरा, आरक्षक रितेश देशमुख, आरक्षक मनोज वर्मा, आरक्षक अमित नायक, आरक्षक टिकेश्वर देखमुख, आरक्षक मिथलेश साहू, आरक्षक प्रकाश वर्मा, आरक्षक सूर्यपाल वटटी, आरक्षक झाडूराम वर्मा, आरक्षक संतराम साहू और सातवीं वाहिनी सीएएफ भिलाई के दो प्रधान आरक्षक दुष्यंत राठौर और सुंदरलाल चौधरी भी शहीद हो गए।