जिलों की घोषणा के बाद जिस तरह प्रदेश भर में विरोध के बादल मंडरा रहे हैं। इधर-उधर होने की संभावनाओं के बीच भीलवाड़ा जिले के बदनोर, आसींद व कोटड़ी क्षेत्र में भी लोगों की धड़कनें बढ़ गई है। बदनोर क्षेत्र के लोग तो ब्यावर जिले से जुड़ना चाह रहे हैं। इसी तरह आसींद के समक्ष ऊहापोह की स्थिति बनी है। आसींद का मन है कि भीलवाड़ा में ही रखा जाएं। कोटड़ी तहसील व मांडलगढ़ के कई गांव भीलवाड़ा शहर के नजदीक है। लोग प्रयास में जुट गए हैं कि उनका क्षेत्र भीलवाड़ा में ही रहे। चूंकि सरकार की ओर से क्षेत्रों का सीमांकन राजस्व विभाग के जरिए ही होना है। राजस्व विभाग का जिम्मा क्षेत्र के मंत्री रामलाल जाट के पास है। इसलिए लोगों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है। लोगों की चिन्ता यह भी है कि नए जिले में जुड़ने से उन्हें अपने राजस्व रिकॉर्ड, आधार कार्ड, लाइसेंस, बैंक, पेन कार्ड इत्यादि कागजात में जिला आदि नाम-पत्तों का रिकॉर्ड अपडेट करवाना पड़ेगा।
दूसरी तरफ स्थानीय नेताओं में बीच हलचल बढ़ गई है। भीलवाड़ा जिले में वर्तमान में सात विधानसभा क्षेत्र हैं। इसमें दो कांग्रेस व 5 भाजपा के पास है। अब नया जिला बनने से शाहपुरा सीधे रूप से भीलवाड़ा जिले से हट जाएगा। साथ ही दो अन्य विधानसभा जहाजपुर व आसींद या अन्य क्षेत्र शाहपुरा में शामिल करने की स्थिति में भीलवाड़ा का राजनीतिक कद घटने की पूरी संभावना है। चूंकि शाहपुरा को यह तोहफा भाजपा विधायक कैलाश मेघवाल के प्रयास से मिला है। मुख्यमंत्री ने शाहपुरा को जिला बनाने की घोषणा के दौरान मेघवाल का नाम भी पुकारा। ऐसे में आने वाले चुनाव में मेघवाल के भविष्य का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह समय बताएगा। हालांकि जिले के तोहफे के बाद मेघवाल खासे उत्साहित दिख रहे हैं।
साथ ही भाजपा व कांग्रेस के बीच जिले का श्रेय लेने की होड़ दिख रही है। भाजपा अपने विधायक की जीत मान रही है तो कांग्रेस अपनी सरकार की घोषणा का फायदा लेना चाह रही है। घोषणा से किसे फायदा होगा या किसे नुकसान, यह समय बताएगा, लेकिन कुछ जगह विरोध की आवाज उठने के साथ ही भाजपा ने फायदे-नुकसान पर नजरें गढ़ा ली है।
उम्मीद है कि अलग जिला बनने से शाहपुरा क्षेत्र में विकास की नई संभावनाएं बढ़ेगी। दोनों जिलों का दायरा कम होने से संबंधित जिला प्रशासन के अफसरों के लिए जनता पर फोकस करना आसान रहेगा। वहीं राजनीति से जुड़ने के इच्छुक छुटभैया नेताओं के लिए राजनीति की नई राह खुलेगी। कयास यह भी है कि 2026 के नए परिसीमन में विधानसभा की सीटों के आरक्षण व समीकरण पर भी प्रभाव पड़ सकता है।