scriptस्वराज अखबार को ढाई साल में बदलने पड़े 8 संपादक, संपादक को हुई थी 95 साल की जेल | 8 journalists to change Swaraj newspaper in two and a half years | Patrika News
भोपाल

स्वराज अखबार को ढाई साल में बदलने पड़े 8 संपादक, संपादक को हुई थी 95 साल की जेल

सप्रे संग्रहालय की 1986 में हुई थी स्थापना

भोपालJun 19, 2019 / 02:58 pm

hitesh sharma

madhavrao sapry

स्वराज अखबार को ढाई साल में बदलने पड़े 8 संपादक, संपादक को हुई थी 95 साल की जेल

भोपाल। माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की स्थापना 19 जून 1986 में हुई थी। यहां देश के ख्यात लेखक और साहित्यकारों के हस्तलिखित दस्तावेज, पाण्डुलिपियां और पत्र शोधार्थी और विजिटर्स को देखने को मिलते रहे हैं लेकिन सप्रे की खुद की विरासत से अब तक अछूता था। उनके पोते अशोक सप्रे ने इसे अब संग्रहालय को सौंप दिया है।

उनके निजी सामान में उनके हस्तलिखित पत्र, उनका अंतिम समय का फोटो, जनवरी 1900 में प्रकाशित छत्तीसगढ़ मित्र के अंक, हिन्दी केसरी के अंक सहित कई पाण्डुलिपियां हैं। संग्रहालय के स्थापना दिवस पर पत्रिका प्लससप्रे की विरासत सहित कई ऐसी शख्यितों से आपको रू-ब-रू कराने जा रहा है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान किया।
संग्रहालय के संयोजक विजय दत्त श्रीधर के अनुसार माधवराव सप्रे ने 10 से ज्यादा किताबों का अनुवाद किया लेकिन सबसे महत्वपूर्ण किताब गीता रहस्य, दासबोध थीं। गीता रहस्य लोकमान्य तिलक ने बर्मा में जेल में रहने के दौरान मराठी में लिखी। वहीं, समर्थ रामदास त्यागी की मराठी लिखित किताब दासबोध का भी हिन्दी में अनुवाद किया। इस संग्रहालय में 1.66 लाख से ज्यादा किताबों का संग्रह है। वहीं, 26 हजार शीर्षक पत्र-पत्रिकाएं, 02 हजार हस्तलिखित पाण्डुलिपियां, 10 हजार से ज्यादा पत्र, एक हजार से ज्यादा शोध, एक हजार लेखकों का व्यक्तिगत सामान मौजूद है।
spary musuem
8 संपादकों को हुई 94 साल 9 माह की सजा
श्रीधर ने बताया कि संग्रहालय के पास अब तक स्वराज अखबार के संपादकों के बारे में लिखित जानकारी ही उपलब्ध थी। पहली बार उनके फोटो एग्जीबिट किए गए हैं। नवंबर 1907 में उर्दू में निकलने वाले अखबार स्वराज ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कभी कलम को कमजोर नहीं होने दिया। अंग्रेजों ने इसकी सजा भी दी। इस अखबार में ढाई साल में आठ संपादक बदले। इसके सात संपादकों को 94 साल 9 महीने सजा काटना पड़ी। इसके कुल 75 अंक ही निकले। बदायूं के सुधीर विद्यार्थी ने इस अखबार और इन संपादकों से जुड़े दस्तावेज 31 मई को संग्रहालय को सौंपे हैं।

एक पैर दफ्तर में दूसरा जेल में होगा…
विजयदत्त श्रीधर के अनुसार यह अखाबर करीब ढाई वर्ष तक प्रकाशित हुआ। संपादक शाांतिनारायण भटनागर को दो वर्ष की सजा और 500 रुपए जुर्माना लगाया गया। वहीं, होतीलाल वर्मा को 10 वर्ष की सजा सुनाई गई। इसी तरह बाबू राम हरी को 21 वर्ष की सजा तो नंदगोपाल और लद्दाराम को 30-30 वर्ष की सजा हुई। यह अखबार नवंबर 1907 में प्रयागराज से शुरू हुआ और 1910 में बंद हो गया। श्रीधर बताते हैं कि अखबार के संपादक को जौ की दो रोटी और एक प्याला पानी तनख्वाह के रूप में दिया जाता था।उनका एक पैर दफ्तर में दूसरा जेल में होना… भी योग्यता थी।
मल्लाह ने धोए थे गांधीजी के चरण…
श्रीधर के अनुसार संग्रहालय में एक पेंटिंग लगी है। जिसमें मल्लाह गांधीजी के पैर धो रहा है। यह घटना 1 दिसंबर 1993 की जबलपुर दौरे की है। गांधीजी पैसेंजर ट्रेन से करेली पहुंचे थे। वहां से नर्मदा के बरमान घाट पहुंचे। यहां मल्लाह ने उनके पैर पखारने के बाद उन्हें नाव में नर्मदा की सैर कराई। वहीं, एक अन्य पत्र भोपाल विलीनीकरण आंदोलन से जुड़ा हुआ है। यह पत्र बालकृष्ण गुप्ता ने जगदीशप्रसाद चतुर्वेदी को बोरस कांड में हुई हत्याओ के तुरंत बाद लिखा था। इस पत्र की भोपाल की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका थी।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो