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पासिंग आउट परेड में रखी गई ये व्यवस्था
अनुज ने 13 जून शनिवार को आईएमए की पासिंग आउट परेड में हिस्सा लेकर लेफ्टिनेंट पद हासिल किया। अनुज के मुताबिक, ‘परेड के लिए पहले 10 ग्रुप बनाए जाते थे और दो कैडेट्स के बीच 0.5 मीटर की दूरी होती थी, लेकिन इस बार दो कैडेट्स के बीच में 2 मीटर की दूरी रखी गई, ताकि सोशल डिस्टेंस भी बनी रहे। हर कैडेट ने चेहरे पर मास्क और हाथों में ग्लव्स पहन रखा था। ग्रुप भी घटाकर 8 किए गए।’ आईएमए के 87 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब कैडेट की इस परेड में उनके माता-पिता तक शामिल नहीं हो सके।
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मां का घर पर रहना ही सुरक्षित- अनुज
अनुज के मुताबिक, ‘मुझे चार साल से जिस क्षण का बेसब्री से इंतजार था कि मां आएंगी और सेना की वर्दी में मेरे दोनों कंधों पर दो-दो सितारे अपने हाथों से लगाएंगी। मुझे सिर्फ इसी बात का अफसोस रहा कि, मेरा यही सपना पूरा नहीं हो सका, लेकिन मुझे इस बात की तसल्ली है कि, मेरी मां ने पासिंग आउट परेड में मुझे टीवी पर लाइव देखा।’ अनुज ने कहा कि, ‘जो कार्य हमेशा से मां-पापा द्वारा कराया जाता रहा है, लेकिन संक्रमण से बचने के चलते हमारे अफसरों और मैडम ने ही माता-पिता के स्थान पर हमारे कंधों पर सितारे टांके। हालांकि, ऐसी स्थिति में मां का घर पर रहना ही ठीक और सुरक्षित है।’
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राजधानी के लिए गर्व की बात
भोपाल के लिए ये गर्व की बात है कि, शहर की गुलमोहर कालोनी में रहने वाले दुबे परिवार ने एक साल में दो लेफ्टिनेंट सेना को दिए। अनुपम और मंजू दुबे के बेटे अनुज पासिंग आउट परेड के बाद सेना की आर्टिलरी रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट बन गए। एक साल पहले उनके चचेरे भाई और अभिलाष दुबे के बेटे आदित्य भी इसी पद पर गए। आदित्य अभी सिक्किम में तैनात हैं।