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भोपाल

जब आडवाणी ने किया अलर्ट पर नहीं माने अटल, भारी पड़ गया फैसला…

पूर्व उप प्रधानमंत्री और बीजेपी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर इस बात की जानकारी देते हुए आडवाणी को बधाई दी। कई दशकों के राजनैतिक जीवन में लालकृष्ण आडवाणी का एमपी से गहरा नाता बना रहा। ग्वालियर के दो नेताओं, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया के साथ उन्होंने बीजेपी के राजनैतिक उत्कर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।

भोपालFeb 03, 2024 / 01:13 pm

deepak deewan

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लालकृष्ण आडवाणी

पूर्व उप प्रधानमंत्री और बीजेपी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर इस बात की जानकारी देते हुए आडवाणी को बधाई दी। कई दशकों के राजनैतिक जीवन में लालकृष्ण आडवाणी का एमपी से गहरा नाता बना रहा। ग्वालियर के दो नेताओं, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया के साथ उन्होंने बीजेपी के राजनैतिक उत्कर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।
आडवाणी और अटल की दोस्ती की तो मिसाल दी जाती है। दोनों का सार्वजनिक जीवन आरएसएस से शुरु हुआ। बाद में जनसंघ और इसके बाद बीजेपी में भी आडवाणी और अटल कदम दर कदम साथ चलते रहे। ये दोनों नेता एक—दूसरे की सलाह की काफी कद्र किया करते थे हालांकि एक मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी ने आडवाणी की राय को सिरे से खारिज कर दिया था। आडवाणी की नजरअंदाजी उन्हें बहुत भारी भी पड़ी थी।
दरअसल सन 1984 में आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से चुनाव लड़ने से मना किया था। तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों को देखते हुए आडवाणी ने अटल को अलर्ट करते हुए ग्वालियर की बजाए कोटा से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा। इंदिरा गांधी की मौत के बाद तब देशभर में कांग्रेस की लहर थी और आडवाणी की जानकारी मिली थी कि ग्वालियर से कांग्रेस माधवराव सिंधिया को अपना उम्मीदवार बना रही है। ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी की हार का खतरा था लेकिन वे नहीं माने। अटल उस समय भी खूब लोकप्रिय थे लेकिन इंदिरा गांधी की मौत से उपजी सहानुभूति की लहर में माधवराव सिंधिया से वाजपेयी अपने गृहनगर से ही हार गए।
बीजेपी के पुराने नेता इस घटनाक्रम की खूब चर्चा करते हैं। चुनाव घोषित होते ही पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से अपना उम्मीदवार बना दिया था। पर्चा भरने के एक दिन पहले अटल रात को ग्वालियर पहुंचे और पूर्व मेयर व पूर्व सांसद नारायण कृष्ण शेजवलकर के घर पर ठहरे। अगले दिन सुबह सुबह लालकृष्ण आडवाणी भी आ पहुंचे और अटल से मुलाकात की।
आडवाणी ने उनसे कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में ग्वालियर से चुनाव लड़ना उचित नहीं होगा। उन्होंने इस संबंध में भैंरोसिंह शेखावत का भी संदेश देते हुए अटल को सलाह दी कि वे फौरन कोटा जाएं और वहां से लोकसभा का नामांकन दाखिल करें।
लालकृष्ण आडवाणी की बात सुनकर अटल ने पल भर विचार किया और कहा कि— लालजी, मैं कोटा से चुनाव नहीं लडूंगा, लडूंगा तो सिर्फ ग्वालियर से।

आडवाणी ने फिर कहा कि उनके दिल्ली से ग्वालियर रवाना होने के बाद पार्टी को जानकारी मिली है कि कांग्रेस जबरदस्ती माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से उम्मीदवार बना रही है। रात को पार्टी आलाकमान ने इस बारे में सलाह मशवरा किया तो भैरोसिंह शेखावत ने कहा कि वाजपेयी को कोटा सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। इससे वे देश भर में आराम से चुनाव प्रचार कर पाएंगे और कोटा से चुनाव आराम से जीता भी जा सकता है।
आडवाणी समझाते रहे पर अटल नहीं माने और ग्वालियर से ही चुनाव लड़े।
कांग्रेस ने रणनीति के तहत नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन माधवराव सिंधिया को पर्चा भरने के लिए भेज दिया। आखिरकार अटल चुनाव हार गए। आडवाणी की सलाह के बाद भी अटल द्वारा ग्वालियर से ही चुनाव लड़ने की जिद लम्बे समय तक चर्चा का विषय बनी रही।

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