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भोपाल

मोर के अंडे खा रहे कुत्ते, बच्चे और अंडे दोनों असुरक्षित

National Bird Peacock: राजधानी के शहरी वनों और आसपास के क्षेत्रों में 10 हजार से ज्यादा मोर

भोपालMar 14, 2024 / 11:23 am

Ashtha Awasthi

 National Bird Peacock

National Bird Peacock

National Bird Peacock: राजधानी और आसपास के वनक्षेत्रों में राष्ट्रीय पक्षी मोर के अस्तित्व पर गहरा संकट है। वन विभाग ने तकनीक की मदद से शिकारियों पर रोक लगा दी है। लेकिन वह कुत्तों पर काबू पाने में नाकाम साबित हो रहा है। मोर वन में आवारा कुत्ते मोरों के अंडे और बच्चे खा जाते हैं। इससे उनकी आबादी तेजी से घट रही है। वन विभाग के कर्मचारी आए दिन मोरों पर कुत्तों के झपटने के मामले दर्ज कराते हैं। लेकिन विभाग कुत्तों पर रोक नहीं लगा पा रहा है।

शहरी क्षेत्र में मोर वन, वन विहार, शाहपुरा, बोरवन सहित कई स्थानों पर बड़ी संख्या में मोरों का प्राकृतिक निवास हैं। इनकी सुरक्षा के लिए वन विभाग ने यहां फेंसिंग कराई हैं। लेकिन, मोर वन क्षेत्र के आसपास बीते कुछ समय से कुत्तों को फीडिंग कराई जा रही इससे आसपास कुत्तों की संख्या बढ़ गई है। आवारा कुत्ते मोर वन में घुसकर राष्ट्रीय पक्षी पर झपट्टा मारते हैं। अमूमन मोर जमीन पर ही घोंसला बनाता है। यह मौसम अंडों से बच्चे निकलने का है।

 

पक्षी विशेषज्ञ मो. खालिक के अनुसार सावन के दौरान मोरों का ब्रीडिंग सीजन होता है। जनवरी से मार्च तक ये अंडे देते हैं। इनसे बच्चे निकलते हैं। मोर अमूमन जमीन पर ही घोंसला बनाता है। वन एक्टिविस्ट राशिद नूर के अनुसार सुरक्षा इंतजामों की कमी की कमी है। कई जगह से फेंसिंग टूटी है। सुरक्षाकर्मी भी कम हैं। इसलिए राष्ट्रीय पक्षी पर संकट बढ़ा है।

 

राजधानी और आसपास के जंगलों में करीब दस हजार मोर हैं। पिछले साल की गणना में यह संख्या सामने आई थी। इनकी संख्या में दो सालों में 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। लेकिन अंडे सुरक्षित नहीं किए गए तो यह संख्या तेजी से कम हो सकती है।

 

मोर वन, मिंडोरा, केकडिय़ा, स्मृति वन, केरवा, कलियासोत, वन विहार, लहारपुर बॉटनिकल गार्डन सहित अन्य शहरी क्षेत्रों में मोरों की संख्या अधिक है।

मोर वन के आसपास कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसलिए मोरों पर झपट्टा मारने के मामले सामने आए हैं। कुत्तों से मोरों और उनके अंडों को खतरा है। वनकर्मियों से इसकी शिकायत दर्ज करायी है। कुत्तों को भगाने का प्रयास विभाग कर रहा है।- आलोक पाठक, जिला वन अधिकारी

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