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भोपाल

ओटी में भडक़ी आग, मरीज को गोद में उठाकर वार्ड से बाहर भागे, दीवार तोडकऱ बुझाई आग

आग से दहशत: करोंद स्थित निजी अस्पताल में मची अफरा-तफरी, ऑपरेशन थियेटर में नहीं थे डॉक्टर और मरीज, मशीनें हुईं राख

भोपालJun 01, 2019 / 11:29 am

KRISHNAKANT SHUKLA

fire in hospital

ओटी में भडक़ी आग, मरीज को गोद में उठाकर वार्ड से बाहर भागे, दीवार तोडकऱ बुझाई आग

भोपाल. करोंद क्षेत्र में संचालित एक निजी अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में एसी ऑन करने पर हुए शार्ट सर्किट से आग लग गई, जिससे वहां भर्ती मरीज, परिजनों में अफरा-तफरी मच गई। सूचना मिलते ही पुलिस ने मरीजों को गोद में उठाकर बाहर निकाला। दमकल ने अस्पताल की बिल्डिंग में क्रेन से सुराग कर आग बुझाने का प्रयास किया। करीब 15 मिनट की मशक्कत में आग पर काबू पाया गया। इधर पुलिस का कहना है कि जांच के बाद ही आग लगने की वजह का खुलासा हो सकेगा।

जानकारी के मुताबिक बैरसिया रोड करोंद में जीवनश्री अस्पताल संचालित है। बुधवार दोपहर करीब दो बजे कर्मचारियों ने आपरेशन थिएटर से धुआं उठता देखा। कर्मचारियों ने तुरंत पुलिस, फायर ब्रिगेड को सूचना दी। 10 मिनट के अंतराल में पुलिस, दमकलकर्मी मौके पर पहुंचे और आग बुझाना शुरू किया। आग से ऑपरेशन थिएटर में रखी कई मशीनों समेत अन्य उपकरण जलकर राख हो गए। गनीमत रही कि इस दौरान ओटी में कोई मरीज-डॉक्टर नहीं था। दमकलकर्मियों का कहना कि अस्पताल में आग बुझाने के संसाधन नहीं मिले।

आंखों देखी

मैं वहीं ड्यूटी के दौरान राउंड पर था। आग की सूचना मिलते ही अस्पताल पहुंचा। अंदर काफी धुआं भरा था। कर्मचारियों ने बताया कि जंगबहादुर सिंह नाम का मरीज अंदर फंसा है। उसे ऑक्सीजन मास्क लगा है। मैं तुरंत वार्ड में पहुंचा, तो वह छटपटाता मिला। धुएं की वजह से सांस नहीं ले पा रहा था। उसे मैं गोद में लेकर बाहर आया। वहां दो मरीज ही भर्ती थे। – सुंदर सिंह राजपूत, आरक्षक

क्रेन से दीवार में किया छेद

अस्पताल के दूसरे मंजिल में आग लगी थी और पानी की बौछार वहां तक नहीं पहुंच पा रही थी। ये देख पुलिस ने क्रेन बुलाकर दीवार में दो छेद कराए। इसके बाद सीढ़ी लगाकर दमकलकर्मियों ने ऑपरेशन थिएटर में पानी की बौछार शुरू की। आग से कोई जनहानि नहीं हुई।

स्वास्थ्य विभाग को भी नहीं मालूम कि फर्जी अस्पतालों पर कब हुई थी कार्रवाई

जीवनश्री अस्पताल में आग लगने के बाद एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही सामने आ गई है। शहर में ऐसे कई अस्पताल हैं, जो दो-दो कमरों में संचालित हैं, लेकिन इन पर विभाग की नजर तक नहीं है।

शहर में करीब 250 रजिस्टर्ड अस्पताल हैं। इनका पंजीकरण सीएमएचओ ऑफिस में होता है, लेकिन तीन साल पहले स्वास्थ्य विभाग की जांच में पता चला था कि कई ऐसे अस्पताल हैं, जो क्लीनिक के नाम पर रजिस्टर्ड हैं। पिछली बार ऐसे अस्पतालों की जांच कब हुई इसका कोई रेकॉर्ड स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है।

आवासीय कॉलोनी में रेडियोलॉजी सेंटर खुलने पर उससे रेडिएशन का खतरा होता है। एक्स-रे, सीटी स्कैन रेडिएशन होता है। इसे रोकने के लिए कंक्रीट की मोटी दीवारें (बंकर) अनिवार्य हैं, लेकिन घरों में चल रहे रेडियोलॉजी सेंटरों में ऐसी व्यवस्था नहीं है।

उदाहरण से समझें घोर लापरवाही

बुधवारा
अति घनी बस्ती में सालों से नाक-काल-गला का अस्पताल चल रहा है। यहां न सिर्फ ओपीडी चलती है, बल्कि घर के ही कमरों में मरीजों के ऑपरेशन भी किए जाते हैं।

कॉलोनी

कॉलोनियों में चल रहे अस्पतालों में न तो पार्किंग की जगह है न ही अन्य मानक पूरे हो रहे हैं। यही नहीं रात में इमरजेंसी में विशेषज्ञ डॉक्टर्स तक उपलब्ध नहीं होते।

शिवनगर

दो कमरों में एक अस्पताल चल रहा था। बोर्ड पर रिसर्च सेंटर और ट्रॉमा लिखा था। विभाग की टीम ने छापा मारा तो पता चला कि यह बिना डॉक्टर के चल रहा था। अस्पताल, नर्सिंग होम में यह होना जरूरी है

एक हजार वर्गमीटर क्षेत्र जरूरी

राजस्व की भी भारी चपत

अस्पतालों-क्लीनिकों के संचालन के मानक अलग हैं, जिससे सरकार को राजस्व की भी अच्छी प्राप्ति होती है। लेकिन क्लीनिक, नर्सिंग होम, अस्पताल, अल्ट्रासाउंड सेंटर घरों में चलाए जाने से ये व्यावसायिक श्रेणी में दर्ज ही नहीं हुए हैं। यानी इन पर राजस्व संबंधी नियम भी लागू नहीं हो रहे हैं। इसके चलते सरकार को भी खासा नुकसान होता है।

अस्पतालों के पंजीकरण के दौरान सभी मानकों का प्रमाणपत्र लिया जाता है। पूरे कागजात होने के बाद ही अस्पताल को मान्यता मिलती है। यही नहीं समय समय पर हमारी टीम अस्पतालों की जांच करती है। – डॉ. एनयू खान, सीएमएचओ

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