बांग्लादेश में अब फिर से शुरुआत हो रही है उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में पीढिय़ां बदलने के साथ ही शास्त्रीय संगीत को लेकर माहौल बदल गया है। अब वहां इसकी कम ही कद्रदान है। पांच साल पहले बांग्ला फाउंडेशन ने क्लासिकल म्यूजिक कंसर्ट के जरिए शुरुआत की है। यूथ अब इसके जुडऩे लगे हैं। हालांकि संख्या तो काफी कम है लेकिन इसे सकारात्मक शुरुआत तो माना ही जा सकता है।
संगीत के साइंस को समझना होगा अभी भारत में बच्चे लाउड म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। अमेरिका और यूरोप में संगीत के साइंस को समझा जाने लगा है। स्ट्रेस भरी लाइफ में संगीत के सुकून को महसूस करते हैं। यहां आर्टिस्ट को कम पैसा मिलता है लेकिन हर किसी की इच्छा भारत में परफॉर्म करने की होती है। भोपाल में मानव संग्रहालय और भारत भवन के बाद यह मेरा तीसरा शो है।
स्टेज पर जाने में लगता था डर
अलिफ लैला बताती हैं कि बचपन में मुझे लोगों से बात करने में शर्म आती थी। स्टेज देखते से ही डर लगने लगता था। मेरी मां सितार वादिका बनना चाहती थी, मुझे इंस्पायर कर उन्होंने अपना सपना पूरा किया। गुरु उस्ताद मीर कासिम खान से मुझे सिखाया।
पखावज के साथ किया फ्यूजन
उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत आलाप से की। इसके बाद जोड पर पखावज का फ्यूजन पेश किया। इस प्रस्तुति में अनुजा ने संगत की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए राग किरवानी पर सितार वादन किया। इस प्रस्तुति में रामेन्द्र सिंह सोलंकी ने संगत दी। रवीन्द्र संगीत पर फॉक धुन पेश कर अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।