नर्मदा किनारे यह मंदिर घाट से करीब 11 फीट नीचे गुफा में है जहां हिंगलाज देवी की प्रतिमा स्थापित की गई है। हिंगलाज माता का यह मंदिर शहर से करीब 4 किमी दूर है, इसके बाद भी यहां हर तीज त्योहारों पर माता के दर्शन और पूजन करने वालों का तांता लगा रहता है। नवरात्रि के नौ दिनों में तो यहां भक्तों का जबर्दस्त जमावड़ा लगा रहता है।
मंदिर के पुजारी पंडित भवानी शंकर तिवारी इस मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं। उनका कहना कि सालों पहले खर्राघाट पर ही नर्मदा के किनारे एक गुफा थी जिसमें हिंगलाज देवी माता की मूर्ति विराजमान थीं। यहां एक बाबा भी रहते थे जो नित्य प्रतिदिन उनकी विधि विधान से पूजा करते थे। उस समय यह स्थान घने जंगलों के बीच था इसलिए यहां आमतौर पर लोग नहीं जाते थे। कभी कभार ही माता के भक्त यहां जाते थे। सन 1973 में नर्मदा में भयानक बाढ आई जिसमें सब कुछ जलमग्न हो गयो। नर्मदा के जल में माता हिंगलाज का मंदिर भी डूब गया, जब बाढ उतरी तब तक गुफा भी नष्ट हो चुकी थी और मूर्ति का भी कुछ पता नहीं लगा।
लोग इस मंदिर और स्थान को भूलने लगे हालांकि नियति को कुछ और ही मंजूर था। करीब दो दशक बाद खर्राघाट पर नर्मदा पर नया पुल निर्माण शुरू हुआ। इसी दौरान ब्रिज के ठेकेदार को रात में एक सपना आया था जिसके बाद नए मंदिर निर्माण की राह प्रशस्त हुई। पुजारी भवानी शंकर तिवारी बताते हैं कि यह बात वर्ष 1990-91 की है जब यहां नया रेल ब्रिज बनाया जा रहा था। भोपाल के ठेकेदार राजकुमार मालवीय को यहां काम में लगातार कई रुकावटें आ रही थीं जिससे वे बेहद परेशान हो गए थे। इसी बीच एक रात ठेकेदार को माता हिंगलाज सपने में आईं और अपने स्थान के बारे में बताया। ठेकेदार ने जब सपने के मुताबिक खुदाई करवाई तो पुराना मंदिर और देवी मूर्ति निकल आई। इसके बाद विधिवत पूजा पाठ कर हिंगलाज देवी की मूर्ति यहां स्थापित की गई।