पूर्व मुख्यमंत्री और गोविंदपुरा से लगातार विधायक रहे बाबूलाल गौर ( babulal gaur ) की पुण्यतिथि पर शुक्रवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ( cm shivraj singh chauhan ) ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और उनके किए कार्यों को याद किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और लोकप्रिय जननेता स्व. बाबूलाल गौर जी ऊर्जा के धनी और सहज व्यक्तित्व के स्वामी थे। जनता की सेवा और निरंतर काम ही उनके जीवन का सिद्धांत था। अपने विधानसभा क्षेत्र में घूमते-फिरते लोगों का दु:ख-दर्द सुनना और उसका समाधान उनकी दिनचर्या में शामिल था। उन्होंने एक मजदूर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया था।
मजदूर से सीएम तक :-:
मध्यप्रदेश में एक दुकान पर काम करने उत्तरप्रदेश से आया एक लडक़ा न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि देश में बुलडोजर मंत्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ, फिर एक दिन मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गया। बेबाकी से बात करने वाले बाबूलाल गौर खरी-खरी सुनाने में भी कभी नहीं हिचकते थे। राजनीति में ऐसा सिक्का जमाया कि लगातार दस बार विधायक चुने जाने का रेकॉर्ड कायम किया। प्रखर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) से जुड़ने के बाद बाबूलाल गौर कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
तब कहलाए बुलडोजर मंत्री :-:
बाबूलाल 1990 में पहली बार पटवा सरकार में स्थानीय प्रशासन मंत्री बने। 1992 तक वे मंत्री रहे। इस दौरान गौर अतिक्रमण हटाने को लेकर हमेशा सख्त रहते थे। यही कारण है कि वे कहीं भी किसी भी वक्त दिशा निर्देश देकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करवा देते थे। उनके इसी अंदाज के बाद वे देशभर में बुलडोजर मंत्री के रूप में फेमस हो गए।
फैसले से समझौता नहीं किया :-:
गौर को जानने वाले लोगों के पास उनसे जुड़े कई किस्से हैं। बताया जाता है कि भोपाल में अतिक्रमणकारी नहीं मान रहे थे, इस पर सिर्फ बुलडोजर खड़ा कर उसका इंजन चालू करा दिया गया। यह अंदाज तेक अतिक्रमणकारी वहां से रफूचक्कर हो गए। वीआईपी रोड को बनाने से पहले भी अवैध झुग्गियों पर बुलडोजर चलवाया था, तभी यह रोड मरीन ड्राइव की तरह बन पाई थी। ऐसे भी किस्से बताये जाते हैं कि मंत्रीजी का बुलडोजर रोकने के लिए नोटों से भरे सूटकेस भी लाए जाते थे, लेकिन वे कभी नहीं रुके।
पहली बार बने विधायक :-:
बाबूलाल जिस शराब दुकान के बाद कपड़ा मिल में भी काम कर चुके हैं। इसी दौरान वहां उन्हें एक रुपया दिहाड़ी मिलती थी। जिस दिन हड़ताल पर रहते उस दिन की मजदूरी कट जाती थी। इसी बीच वे राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस में चले गए, वहां की राजनीति समझ नहीं आई। गौर संघ से जुड़े ही थे। गोवा मुक्ति आंदोलन में भी भाग लिया था। इसी बीच, संघ के अनुशांगिक भारतीय मजदूर संघ की स्थापना हो गई और वे संस्थापक सदस्यों में शामिल हो गए। तब तक गौर साहब BA-LLB भी कर लिया। गौर का चुनावी सफर शुरुआत में मुश्किलों भरा रहा।