विकसित हो रही सडक़े और गड्ढों भरी सडक़ों पर यह मशीनें जा नहीं है। अधिकांश साफ-सफाई में नगर निगम के कंडम वाहन ही काम कर रहे है। उनके भी खराब हो जाने के बाद कई दिनों तक ड्राइवर कंडेक्टर हाथ-पर हाथ रखे बैठे रहते है। ऐसे में करोड़ों की लागत से खरीदी गई सडक़ की सफाई के लिए ऐसी जगह पर काम ही नहीं आ रही है।
पुराने शहर बाजार व रहवासी क्षेत्र की अधिकांश सडक़ो पर कोई कचरा गाड़ी भी नहीं पहुंच पाती है। मैन्युअल कचरा उठाने की व्यवस्था यहां चल रही है। साइकिल से कचरा गलियों से लेने की व्यवस्था भी ठप्प पढ़ी है।
बीच में कुछ दिन स्वीपिंग मशीनें दिन में चलने लगी थी। बताया गया कि इन मशीनों से अधिक धूल उडऩे की समस्या के चलते इन्हे दिन में संचालन बंद करवा दिया गया था। जबकि इतनी महंगी मशीनों में सक्शन सिस्टम को बेहतर नहीं किया गया। रात में सिर्फ डिवाईडर व फुटपाथ के किनारों की धूल ही यह मशीनें उठाती है। उसमें भी जहां अधिक धूल होती है, वहां धूल के बंवडर बनने से लोगों को दिक्कत होती है।
इनका कहना
हाईटैक व्यवस्था पर गाडिय़ों की खरीदी से बेहतर है कि मैन्युअल व्यवस्था ही दुरुस्त और छोटे वाहनों पर शुरू हो जाएं तो पूरा शहर स्वच्छ नजर आएं। रहवासी क्षेत्र व बाजारों ने नजर नहीं आती स्वीपिंग मशीने। हाइवे पर इतना कचरा नहीं रहता है।
प्रकाश मालवीय, रहवासी, बरखेड़ी
मशीनें काफी बड़ी व चौड़ी होने के कारण सिटी की सकरी सडक़ों पर इन्हे चलाना मुश्किल होता है। धूल मशीन में लगे एयर प्रेशर से उड़ाने के साथ ही उसे मशीन से खींचा जाता है। इसके अलावा पानी की छिडक़ाव भी साथ होता है। धूल उडऩे की दिक्कतें तो मशीन से नहीं होना चाहिए। अगर कहीं कोई गड़बड़ी हो रही है तो मैं चेक करवा लेता हूं।
विनित तिवारी, अपर आयुक्त, नगर निगम