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भोपाल

तालाब ही नहीं शहर की पहाडि़यां भी संकट में, 800 हेक्टेयर में उजड़ गईं

राजधानी की सेहत से खिलवाड़: सरकारी एजेंसियों की लापरवाही से पर्यावरण को नुकसान…

भोपालMay 21, 2019 / 08:05 am

Amit Mishra

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तालाब ही नहीं शहर की पहाडि़यां भी संकट में, 800 हेक्टेयर में उजड़ गईं

भोपाल। राजधानी की पहाडिय़ां और तालाब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पहाडिय़ों को काटकर कांक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। शहर में 800 हेक्टेयर का पहाड़ी क्षेत्र उजाड़ दिया गया है। इन्हें बचाने के लिए नगर निगम, वन एवं पर्यावरण, सीपीए समेत पांच एजेंसियों को जिम्मा दिया है, लेकिन वे चुपचाप देख रहे हैं। चूनाभट्टी में मैनिट पहाड़ी को खोदा जा रहा है। यहां शोरूम बनाने 8000 वर्गफीट की पहाड़ी समतल कर दी गई। इसी लाइन में एक कॉलोनी के भीतर पहाड़ी काटकर निर्माण की तैयारी है।


अरेरा, ईदगाह और श्यामला हिल्स, कटारा, मनुआभान की टेकरी, चूनाभट्टी, शाहपुरा हिल्स, मेंडोरा, बैरागढ़-चीचली आदि पहाड़ी क्षेत्र रहवासी हो गए हैं। भोपाल में 18 जल संरचनाएं हैं। इनमें विभिन्न माध्यमों से गंदगी मिल रही है।

ऐसे समझें कैसे खत्म हुई पहाडि़यां…
मनुआभान से लेकर बैरागढ़ की पहाडि़यों की तलहटी एवं ऊपरी हिस्से में कॉलोनियां बन गई हैं।

कोलार में दानिश हिल्स, साईं हिल्स समेत तमाम कॉलोनियां पहाड़ों पर हैं।
शाहपुरा, मनीषा मार्केट, गुलमोहर से लेकर आसपास की कॉलोनियों के लिए शाहपुरा पहाड़ी को काटा गया है।

अरेरा हिल्स पब्लिक सेमी पब्लिक लैंडयूज से पूरी तरह सरकारी भवनों का क्षेत्र बन गया, यहां जगह बाकी नहीं है।
मैनिट पहाड़ी का चूनाभट्टी वाला हिस्सा काटकर खत्म किया जा रहा है। यहां पहले से ही बड़ा स्लम एरिया है। अब इसके किनारे बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के लिए पहाड़ी काटी जा रही है।

बड़े क्षेत्र में पहाडिय़ों की तलहटी वाले तालाब किनारे का ग्रीन बेल्ट खत्म कर दिया गया है।

इन उपायों की दरकार
पहाड़ी व तालाब के पास की जमीन को संवेदनशील श्रेणी में रखकर, नियंत्रण राज्य सरकार को देना चाहिए।

पहाडिय़ों की ढलान पर पौधरोपण कर हरियाली बढ़ानी चाहिए। इससे शहर का पर्यावरण स्वच्छ होगा

घाटियों का उपयोग सरकारी आवास बनाने में होना चाहिए। कोशिश की जाए कि ग्रीन बेल्ट का विस्तार हो।

 

बिगड़ गया संतुलन
मेपकास्ट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेश सक्सेना का कहना है कि पहाडि़यां कटने से बारिश में कमी, गर्मी बढऩा और ठंड का मौसम भी गड़बड़ा रहा है। राजधानी की प्राकृतिक सुंदरता खत्म हो रही है। पर्यावरणीय तौर स्थिति खराब हुई है। खुली पहाडि़यों पर हरियाली इकोलॉजी सिस्टम को दुरुस्त रखती है।

 

 

भोपाल का भूगोल
भोपाल पहाड़ी क्षेत्र पर बसा है। ये उत्तर व दक्षिण-पूर्व की ओर ढलान पर है।
पहाड़ी का उभरा हिस्सा द.-प. और उत्तर-पश्चिम की ओर है।

तीन प्राकृतिक ड्रेनेज है।

सही बात है कि बीते सालों में भोपाल की प्राकृतिक संपदा को बड़ा नुकसान पहुंचाया गया है। हम इसे बचाने के लिए गंभीर हैं। संबंधित विभागों से इस बारे में स्थिति स्पष्ट की जाएगी।
जयवर्धन सिंह , मंत्री नगरीय प्रशासन

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