संकेत श्रीवास्तव/शकील खान
भोपाल। सावन माह में सिर्फ दस दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में दस लाख से भी अधिक लोग पहुंचते हैं। पत्रिका टीम ने खतरों से भरी करीब 18 किलोमीटर की यात्रा का कवरेज किया। कदम-कदम पर यहां मौत और जिंदगी का खेल चलता रहता है। किन कष्टों में श्रद्धालु यह यात्रा पूरी करते हैं यह महसूस किया।
mp.patrika.com आपको बताने जा रहा है पचमढ़ी के नागद्वारी यात्रा के बारे में जो देश में अनोखी है, यहां पल-पल मौत और जिंदगी का खेल चलता रहता है।
सबसे पहले पत्रिका टीम ने सुबह 6 बजे पचमढ़ी शहर से अपनी यात्रा शुरू की। रास्ते में सड़क किनारे बड़ी संख्या में श्रद्धालु कतारबद्ध भोलेनाथ के जयकारे लगाते हुए जा रहे थे। यहां मध्यप्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ से भी श्रद्धालु आ रहे थे। पहले तो सड़क मार्ग से ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां सड़क अब खत्म हो चुकी थी। यह स्थान नागद्वारी पिलग्रिम ट्रैक के नाम से जाना जाता है। यहां सुबह 7 बजे पत्रिका टीम ने पैदल यात्रा शुरू कर दी। हल्की-हल्की बारिश की फुहार शुरू हो गई थी। शुरुआत में ही ऊंची-ऊंची पहाड़ी और खड़ी चट्टाने श्रद्धालुओं का रास्ता रोकने के लिए खड़ी थी, लेकिन बारिश और ठंड का अहसास कराती हवाएं और शिव के जयकारे यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए शक्ति दे रहे थे।
हजारों सांप है नागलोक में
घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे नागद्वारी में हजारों सांप रहते हैं। अक्सर रास्ते के किनारे यात्रियों को नजर आते रहते हैं। लेकिन, लोग जरूर खौफ में रहते हैं, लेकिन सांप यात्रियों को कुछ नहीं करते। इसी प्रकार बिच्छू भी बड़ी तादाद में नजर आते रहते हैं। लेकिन, भगवान शंकर का नाम लेकर यात्री आगे बढ़ते जाते हैं।
बच्चे, वृद्ध भी यात्रा में शामिल
राजस्थान से आया एक परिवार भी इस यात्रा में शामिल था। शिव में असीम श्रद्धा और आस्था के साथ यात्रा पर आए परिवार में बुजुर्ग और बच्चे भी शामिल थे। बम भोले के जयकारों के बीच इस कठिन यात्रा का असर कहीं भी इस परिवार के सदस्यों पर दिखाई नहीं दे रहा था।
लगातार बारिश के बीच दुर्गम रास्ते और झरने
पचमढ़ी की नागद्वारी यात्रा पूरी की इस दौरान लगातार रमज़िम तो कभी तेज बारिश हो रही थी। श्रद्धालुओं को बेहतर मौसम के कारण दुर्गम पहाडी मार्ग पर पैदल यात्रा में कोई परेशानी नहीं हुई।
घने जंगलों के बीच है ‘नागलोक’
पचमढ़ी में हर साल 10 दिनों के लिए लगाने वाले नागद्वारी यात्रा मेला का आयोजन किया जाता है। ये मेला घने जंगलों के बीच लगाता है जिसे नागद्वारी मेला कहा जाता है। इस मेले के बारे में मप्र से ज्यादा श्रृद्वालु महाराष्ट्र और उसके आसपास के श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस मेले की खास बात ये है नागदेव के दर्शन के लिए सतपुड़ा रिजर्व इस मेले को केवल 10 दिन के लगाने की अनुमति देता है जिसमें दस दिनो में ही करीब 10 से 12 लाख श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे है।
सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद
नागद्वारी यात्रा के लिए पचमढ़ी जलगली से लेकर कालजाद, चिनमन, स्वर्ग द्वार, नागफनी, नागपुर, कैजरी तक जिले के सभी विभागों के करीब एक हजार अधिकारी कर्मचारी मेला व्यवस्था संचालन के लिए तैनात थे। ग्राम रक्षा समिति सदस्य, कोटवार, स्काउट गाइड की सेवाभावी सदस्य भी इसमें शामिल थे। वहीं पुलिस विभाग के जिले भर से 700 कर्मचारी मेला सुरक्षा पर लगे थे।
51 मंडल ने की सेवा
नागद्वारी यात्रा के लिए श्रद्धालुओं को दुर्गाम पर्वत, नले, झरने पार करना होता है। प्रशासन ने पहाड़ पर चढ़ाई अस्थाई लोहे की खड़ी सीढ़ी लगाई, जिस पर पार भक्त नागद्वार, कैजरी गांव तक पहुंचे। जंगल में भूखे प्यासे इन भक्तों की सेवा महाराष्ट्र से आए 51 सेवामंडल कर रहे थे। श्रद्धालुओं को जगह-जगह भोजन, नाश्ता, चाय की सेवा में इनके द्वारा की गई।
बिजली और नेटवर्क भी ठप
नागद्वारी यात्रा शुरू होने से पहले दिन से ही पचमढ़ी में बिजली और बीएसएनएल की नेटवर्क की समस्या श्रद्धालुओं के लिए मुसीबत बनी हुई थी। ये समस्या श्रद्धालुओं ने बिना नेटवर्क और बिजली के बिना मोबाइल की रोशनी में अपनी यात्रा जारी रखा बीच में बिजली नहीं होने से श्रद्धालुओं को पीने के पानी को भी तरसना पड़ा।
सांस फूलाने और हार्टअटैक से दो की मौत
नागद्वारी की दुर्गम यात्रा के दौरान कालजाड़ चिंतन के पास सांस फूलने से 71 वर्षीय नागोराव पिता नेढ़ोवा बगनेवासी निवासी चिचौली जिला नागपुर की मृत्यु हो गई। वहीं भजियागिरी के पास 62 वर्षीय हेमराज पिता कोटैजी ईश्वरकर निवासी ग्राम सावरी जिला भण्डारा महाराष्ट्र की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
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ये है खास
-नागद्वारी मेला सावन के महीने में नागपंचमी से 10 दिन पहले शुरू होता है। नागपंचमी के दिन इस मेले का समापन होता है। इस बार मेला 18 से 28 जुलाई के बीच लगा।
-नागद्वारी, महाराष्ट्रियन समुदाय में विशेष स्थान रखता है। इस बार मेले में 10 लाख लोगों के शामिल होने का अनुमान है जिसमें से 90 फीसदी महाराष्ट्र के थे।
-नागदेव, महाराष्ट्र में विदर्भ के जनसमुदाय के कुल देवता हैं। इस वजह से महाराष्ट्र और उससे सटे इलाकों के लोग हर साल नागद्वारी की यात्रा में आते हैं।
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