6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

रमज़ान : गुनाहों से निजात दिलाता है ये पाक महीना, बस इस तरह कर लें इबादत

इसलिए अपनी इबादत ऐसी करें जिसमें इख्लास (ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा) हो। जितना आप अपने रब के साथ सच्चे मन से जुड़ेंगे, भले ही वो किसी भी भाषा में जुड़ें, वो ज्यादा बेहतर होगा।

3 min read
Google source verification
news

रमज़ान : गुनाहों से निजात दिलाता है ये पाक महीना, बस इस तरह कर लें इबादत

भोपाल/ रमजानुल मुबारक का पाक महीना शुरु हो चुका हैं। दुनियाभर में फेले संक्रमण की वजह से देशभर में लॉकडाउन है। लोग घरों में रहकर ही इबादत कर रहे हैं। रमज़ान की इबादतों के बारे में बताते हुए मुफ्ती फैयाज आलम ने बताया कि, रमज़ान तीन अशरों में बंटा हुआ है। अशरा यानी दस दिन, इस हिसाब से एक अशरा दस दिन और एक महीने में तीन अशरे होते हैं। इनमें पहले दस दिनों को रहमत के दिन बताया, दूसरे दस दिन को मगफिरत और तीसरे अशरे को जहन्नुम से खुलासी (आजादी) के दिन बताया गया है।

पढ़ें ये खास खबर- रमज़ान : खजूर से ही क्यों खोला जाता है रोज़ा? जानिए इसके बेशुमार फायदे


रहमत के अशरे का ये है मकसद

रमजान को तीन अशरों को अलग अलग करने का भी खास मकसद ये है, पहले दस दिन जिन्हें रहमत का अशरा कहा जाता है, उन दस दिनों के जरिये अल्लाह अपने बंदों से कहता है। इन दस दिनों में उसकी तरफ से रेहमत बरसाई जा रही है, है कोई...इस रहमत को लेने वाला। ये समझ लें कि, आखिर रहमत होती क्या है? रहमत के कई मतलब हैं, जैसे- दिव्य दया, दिव्य आशीर्वाद, कृपा, रहम, करुणा, तरस। तो इन दस दिनों में के जरिये अल्लाह कहता है कि, है कोई दया मांगने वाला, है कोई मुझसे आशीर्वाद लेने वाला, है कोई मुझसे रहम मांगने वाला, है कोई मेरी कृपा चाहने वाला।

जो बंदा अल्लाह से सच्चे मन से दुआ करता है, सच्चे मन से इबादत करता है उसपर अल्लाह की रहमत होती है। ज़रा सोचिये कि, जिस इंसान पर अल्लाह (ईश्वर) की दिव्य दया, दिव्य आशीर्वाद, कृपा, रहम, करुणा, तरस मिल जाए, उसकी जिंदगी सफल होगी कि नहीं। अल्लाह अपने रोजेदार बंदों की इबादत से इतना खुश होता है कि वो इन दिस दिनों की इबादत के बदले अपने बंदे पर रहमत बरसा देता है।

पढ़ें ये खास खबर- सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम ही नहीं होता 'रोज़ा', आपके शरीर का हर आज़ा है रोज़दार

मगफिरत के अशरे का मकसद

रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का है। इस अशरे के जरिये अल्लाह मरहूमों की मगफिरत फरमाता है और रोजेदारों को उनके गुनाहों से आजाद करता है। मुफ्ती फैयाज आलम बताते हैं कि मुकद्दस महीने के बीच के दस दिन में अल्लाह पाक जितने भी मरहूम हैं उनकी मगफिरत फरमाता है और रोजेदार बंदों के सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। यानी दूसरे अशरे में अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगी जाए तो वो इन दस दिनों की बरकत से सच्चे मन से माफी मांगने वाले की गुनाहों को माफ कर देता है।

पढ़ें ये खास खबर- Ramzan Story : चल रहा है रहमत का अशरा, जानिए क्या है रमज़ान के इन दस दिनों की अहमियत



जहन्नम से खुलासी के अशरे का मकसद

तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है। तीसरे अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से निजात देता है। मुफ्ती फैयाज आलम के मुताबिक, रमजान के मुकद्दस महीने में मुसलमानों को रोजा रखने के साथ-साथ पांचों वक्त की नमाज़ और तरावीह पढ़नी चाहिए। साथ ही, जितना हो सके अपने वक्त को अल्लाह से माफी मांगने और पनाह मांगने में गुजारें। क्योंकि, ये बात तो सभी जानते हैं कि, हम अपने जीवन में जाने-अनजाने में ऐसी गलतियां (पाप) कर ही जाते हैं, कई बार जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता। पवित्र किताब कुरआन में अल्लाह का वादा है कि, 'इंसान सच्चे मन अपने गुनाहों की तोबा करे, फिर दोबारा उन बुरे कामों को बुरा मानकर उनसे दूर रहे, तो हम उन गुनाहों को माफ कर देते हैं।' इसलिए कोशिश करें कि, हमारी इबादत ऐसी हो, जिससे अल्लाह की रज़ा हासिल हो सके।

पढ़ें ये खास खबर- भीषण गर्मी में हैं इस बार रमज़ान, रोज़ेदार इस तरह रखे अपनी सेहत का ख्याल


कैसी हो इबादत?

मुफ्ती फैयाज़ आलम का कहना है कि, कुछ लोगों को ये भी लग रहा है कि लॉकडाउन की वजह से मस्जिदों में जाकर अपनी इबादतें नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि, हमें ये पता होना चाहिए कि, मस्जिद सिर्फ फर्ज इबादत करने की जगह है। बाकि, नमाज़ में भी सुन्नतें और नफिल नमाज पढ़ना मस्जिद के बजाय घर में ज्यादा बेहतर बताया गया। हालांकि, अभी हालात ऐसे हैं, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना सबसे अहम है। ऐसे हालात में इस्लाम ने हमें अपनी पूरी नमाजों को घर में ही अदा करने का हुक्म दिया है। इसके अलावा, सभी लोगों को ये सोचना भी जरूरी है कि, इबादत आपकी नियत पर डिपेंड करती है, न कि जगह पर। इबादत करके आपका रिश्ता आपके अल्लाह से होता है, वो तो अकेले में भी होगा ही। इसलिए अपनी इबादत ऐसी करें जिसमें इख्लास (ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा) हो। जितना आप अपने रब के साथ सच्चे मन से जुड़ेंगे, भले ही वो किसी भी भाषा में जुड़ें, वो ज्यादा बेहतर होगा।


जनतरी से जाने सेहरी और इफ़्तार का सही वक्त