आपको जानकर हैरानी होगी कि, भोपाल एम्स भारत का पहला ऐसा संस्थान है, जहां इस तरह के शौध की शुरुआत की गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, भोपाल एम्स द्वारा तीन साल इस शौध पर काम किया जाएगा। यानी आगामी तीन साल में सामने आए परिणामों के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर आईसीएमआर को सौंपी जाएगी। भारत में फिलहाल इस तरह के सवालों पर कोई रिसर्च नहीं हुई है। कुछ विदेशों इसे लेकर गाइडलाइन बनी है पर परिणामों की घोषणा अबतक किसी ने नहीं की है।
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शौध में जुटी भोपाल एम्स की ये टीम
एफएमटी डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र विदुआ, डॉ. अरनीत अरोरा और एडिशनल प्रोफेसर पैथोलॉजी डॉ. अश्वनी टंडन ने इस पर रिसर्च पर बीती एक जनवरी से काम कर रहे हैं। इनके साथ दो अन्य जूनियर रिसर्च फैलो भी काम कर रहे हैं।
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2020 में मिल चुकी है शोध को मंजूरी
फिलहाल , रिसर्च शुरु किये जने से पहले तकनीकी उपकरणों की खरीदी की जा रही है। इसके लिए आईसीएमआर ने 35 लाख रुपए बजट के तौर पर स्वीकृत भी किये हैं। बताया जा रहा है कि, आईसीएमआर की ओर से इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए 2020 में ही परमीशन दे दी थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण प्रोजेक्ट जनवरी 2022 से शुरु करना पड़ा है।
क्या है शोध का मकसद?
मुख्य रूप से इस शोध का मकसद ऐसी स्थिति में किसी जवान युवक की मौत के बाद उसके स्पर्म के माध्यम से वंश को आगे बढ़ाना है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी शख्स की किसी भी हादसे में जान चली जाए। वहीं परिवार उसी के जरिए उसके कुनबे को आगे बढ़ाने की ख्वाहिश रखता हो तो ये प्रयोग ऐसे लोगों के लिए बड़ी उम्मीद साबित होगा।
इस आधार पर होगी रिसर्च
सफल हुए तो स्पर्म बैंक भी बना सकेंगे
रिसर्च के लिए लिक्विड नाइट्रोजन सिलेंडर भी खरीदे जा रहे हैं। इससे वाजिब टेंपरेचर भी पहचाना जाएगा, जिस पर स्पर्म को जीवित और कारगर रखा जा सके। इस प्रोजेक्ट के बाद भोपाल एम्स में स्पर्म बैंक बनाने पर भी योजना बनाई जाएगी।
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