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भोपाल में दिल्ली जैसे न बने हालात, पर्यावरण का रखें ध्यान

– एप्को ईडी जितेन्द्र सिंह बोले, उधोग और खदान संचालक पर्यावरण नियमों का करें पालन- ऐसे इंतजाम करें जिससे हमारे यहां भी पब्लिक हेल्थ एमरजेंसी जैसी स्थिति न बने

भोपालNov 05, 2019 / 08:49 am

Ashok gautam

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भोपाल। भोपाल में भी दिल्ली जैसे हालात न बने इसके लिए जरुरी है कि उधोग लगाते समय पर्यावरण मानकों को शत-प्रतिशत पालन किया जाए। उधोग लगाते समय संचालक, कंसटलेंट और अफसर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि थोड़े से फायदे के लिए पर्यावरण नियमों का उल्लंघन न हो।

 

यह बात एप्को के कार्यपालक संचालक जितेन्द्र सिंह राजे ने प्रशासन अकादमी में सोमवार को पर्यावरणीय विषय पर आयोजित कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा कि इसकी हम सबको जिम्मेदारी लेना होगी। चाहे वह पर्यावरण की अनुशंसा करने वाला मैदानी अधिकारी हो या फिर प्रदूषण जांच करने वाले कर्मचारी।

कार्यशाला में सिया के अध्यक्ष राकेश श्रीवास्तव, राज्य स्तरीय मूल्यांकन समिति (सेक) के अध्यक्ष मो. कासन खान विशेष रूप से उपस्थित थे। इसके अलावा इस कार्यशाला में माइनिंग अधिकारी, सड़क विकास निगम, प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों के अलावा माइनिंग प्लान, माइनिंग तथा पर्यावरण के कल्सन्टेंट, खदान संचालक तथा उद्योगिक इकाइयों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

 

बैतूल जैसे घटना की पुनरावृत्ति रोंके

सेक के अध्यक्ष कासम खान ने कहा कि अधिकारी लीज देते समय मैदान में जाकर भ्रमण करें, रोड़ के किनारे माइनिंग लीज न दें, जिससे बैतूल जैसी घटना न दोहराए। उन्होंने बताया कि बैतूल में सड़के किनारे माइनिंग की ब्लास्टिंग में े पत्थर ***** कर एक कार पर गिरा, जिससे कार चालक की मौत हो गई। इसी तरह से छतरपुर में 51-55 मीटर पहाड़ी पर माइनिंग लीज दे दी गई। उस पहाड़ी के नीचे गांव है।

 

खान ने मैदानी अधिकारी ऐसे जमीन पर लीज दे देते हैं, जिससे बीच से रोड़ निकली होती है। इसका उल्लेख माइनिंग प्लान में नहीं किया जाता है। जब गूगल मैप में इसकी स्थिति देखी जाती है तो उसमें रोड़ दिखती है, इस संबंध में जब संबंधित खदान संचालक और लीज देने वाले से जवाब सवाल किया जाता है तो यह कहा जाता है कि रोड तो है, लेकिन चलती नहीं है। इसी तरह से जहां खदाने आवंटित की जाती है वहां लगे हुए पेड़ों के बारे में सही जानकारी माइनिंग प्लान में नहीं दी जाती है।

 

मैदानी अधिकारियों, लीज लेने वाले और माइनिंग प्लान बनाने वाले को हकीकत जानने के लिए मैदान में जाना जरूरी है। अगर वस्तु स्थिति की सही जानकारी प्लान में नहीं होगी तो पर्यावरण की स्वीकृति देने में देरी लगेगी। खान ने कहा कि विभिन्न विभागों में समन्वय का अभाव है। माइनिंग लीज नदी, नाले, एसटी बिजली की लाइन के नीचे, कृषि जमीन पर दे दी जाती है।

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