इस त्योहार को लेकर ये मान्यता है कि इस व्रत को रखने से परिवार के लोगों को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है। बहुत से लोग ये भी मानते हैं कि इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है।
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वट सावित्री की पूजा करने के लिए वैवाहित महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें। फिर शृंगार करके तैयार हो जाएं। भोग प्रसाद के लिए सात्विक भोजन बना लें साथ ही सभी पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर थाली सजा लें। किसी वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करने के बाद पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।फिर पेड़ के चारों ओर 7 बार परिक्रमा करें।
क्या होता है पूजा में (Vat Savitri Vrat pooja)
● वट सावित्री वृत के एक दिन पहले महिलाएं नये कपड़े पहनकर सोलह श्रृंगार करती हैं। ● महिलाएं हाथ में मेहेंदी रचाती हैं और उपवास रखकर पांच तरह के फल-पकवान आदि से बलिया भरती हैं। ● वटवृक्ष के पेड़ में कच्चा धागा लपेटकर पांच बार परिक्रमा करती हैं और वटवृक्ष को जल देने के बाद गले में कच्चा धागा पहनती हैं।
व्रत शुभ मुहूर्त (vat savitri vrat shubh muhurat)
अमावस्या तिथि पांच जून को शाम छह बजकर 24 मिनट पर शुरू हो रही है। तिथि का समापन छह जून को दोपहर चार बजकर 37 मिनट पर होगा। वट सावित्री व्रत छह जून गुरुवार के दिन किया जाएगा। वहीं इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगा।