उक्त सर्वे में यह सामने आया है कि देशभर में अंधापन का औसत 1.99 फीसद है, जबकि ये आंकड़ा बिजनौर में लगभग दोगुना। यहां ये आंकडा 3.67 फीसद तक पहुंच चुका है। जो लोगों के लिए खतरे की घंटी भी है। दरअसल, एम्स द्वारा एनबीएस के तहत देशभर के 31 जिलों का सर्वे कराया गया था। जिसकी रिपोर्ट में बिजनौर जिले में दृष्टिहीनता से जुड़ी बीमारियां सबसे अधिक मिली है।
इस सर्वे में यह सामने आया है कि बिजनौर में लोग पैसे के चलते और डर के कारण आंखों की बीमारी का इलाज नहीं कराते हैं। शुरुआती दौर में आंखों का इलाज न कराने के कारण वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं, रिपोर्ट के अनुसार, मोतियाबिंद सर्जरी का परिणाम भी यहां अच्छा नहीं है।
जिला चिकित्सालय के नेत्र चिकित्सक डॉ. मनोज सैन की मानें तो भूमध्य रेखा के बीच का इलाका होने के कारण यहां लोगों में एलर्जी व नेत्र रोग अधिक रहती है। वहीं नेत्र रोग होने पर अक्सर लोग डाक्टर के पास जाने से कतराते हैं या फिर देहात क्षेत्रों में अकुशल डाक्टरों से इलाज कराकर आंखों में परेशानी बढ़ा लेते हैं। उनका कहना है कि बिजनौर में मोतियाबिंद का ज्यादा प्रभाव रहा है। इसके पीछे का कारण यह देखने में आया है कि यहां के किसान अक्सर तेज धूप में खेतों में काम करते हैं। जिससे कि उनकी आंखों को नुकसान होता है। इसके अलावा पोषण की कमी से भी आंखों की बीमारी होती है।