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बिलासपुर

बच्चों ने भुला दिया, अब वृद्धाश्रम ही हमारा घर और परिवार

पत्रिका: किसकी दिवाली: वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों से मिली पत्रिका की टीम

बिलासपुरOct 16, 2017 / 11:51 am

Amil Shrivas

पत्रिका: किसकी दिवाली

पत्रिका: किसकी दिवाली




बिलासपुर. जब घर में किलकारी गूंजती है, तब माता-पिता के साथ पूरा परिवार त्योहार की तरह खुशियां मनाता है। उस बच्चे के लालन-पालन में माता-पिता अपने जीवन भर की पूंजी लगा देते हैं। खुद के शौक को मारकर अपने बच्चे को हर खुशी देने का प्रयास करते हैं। लेकिन उम्र बढऩे के साथ बच्चे माता-पिता का साथ छोडऩे लगे हैं। यह हकीकत बयां करते हैं शहर के वृद्धाश्रम, जहां बच्चों की बेरूखी के कारण माता-पिता रहने को मजबूर हैं। दिवाली हो या कोई भी अन्य त्योहार, अब तो उन्हें हर दिन एक समान लगता है। फिर भी उन्हें हर समय अपनों की एक झलक पाने का बेसब्री से इंतजार रहता है। आधुनिक युग में जहां लोग भागदौड़ में गुजार रहे हैं एेसे में वास्तविक रूप से दिवाली किसकी है? परिवार में अलगाव के कारण वृद्धाश्रम में बुजुर्ग रहने को मजबूर है। शहर के पुलिस लाइन स्थित कल्याण कुंज आश्रम में ही इस समय ३१ पुरुष व 29 महिलाएं रह रही हैं। सभी परिवार से सताए हुए हैं, कोई अलगाव के कारण अलग रहा है। वहीं कुछ के बच्चों के पास समय नहीं है। इसलिए उनके बुजुर्ग माता-पिता न चाहते हुए भी आश्रम में रहने पर मजबूर हैं। कुछ तो एेसे हैं जो बरसों से यहां रह रहे हैं। अब तो वे इस आश्रम को ही अपना घर और यहां रहने वालों को अपना परिवार मानने लगे हैं। वृद्धाश्रम के अधीक्षक ईश नारायण शर्मा बताते हैं कि यहां रहने वाले लोग किसी न किसी कारणवश यहां रहते हैं। जबकि कोई भी यह नहीं चाहता कि वह अपने परिवार से दूर रहे। बच्चों की बेरुखी के चलते जीवन के अंतिम पड़ाव में एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं।
बच्चों की याद आते ही आंखें नम
वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों से जब अपने घर परिवार के विषय में पूछा गया तब उनके आंखों में आंसू आ गए। उनमें से एक बुजुर्ग ने कहा कि घर परिवार को कैसे भूल सकता हूं। लेकिन उनकी खुशी के लिए उनसे दूर हूं। बस लगता है कि एक झलक देखने को मिल लाए। अब तो अच्छे से दिवाली मनाए हुए गुजरा जमाना लगने लगा है।
भूल रहे कर्तव्य
एक समय भगवान राम व श्रवण कुमार जैसे पुत्र हुआ करते थे, जो अपने माता-पिता के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। लेकिन अब तो एेसे पुत्रों की कल्पना मात्र रह गई है। बहुत कम बच्चे हैं जो अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं जीवन के अंतिम पड़ाव में उनकी सेवा करते हैं।

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