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लिव वैल : अधिक प्रदूषण है तो अस्थमा व सीओपीडी के रोगी सुबह टहलने से बचें

समय के साथ वायु प्रदूषण (air pollution) तेजी से बढ़ रहा है जिससे बचाव के लिए जरूरी सावधानियां बरतनी होंगी। समय रहते सावधानी न बरती गई और बचाव के जरूरी इंतजाम नहीं किए गए तो फेफड़ों (Lungs) को अधिक नुकसान हो सकता है। अन्य दिक्कतें भी बढ़ सकती हैं। शरीर के लिए खाना व पानी जितना जरूरी है उतनी ही जरूरी है हवा।

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Asthma patient

Asthma patient

समय के साथ वायु प्रदूषण (air pollution) तेजी से बढ़ रहा है जिससे बचाव के लिए जरूरी सावधानियां बरतनी होंगी। समय रहते सावधानी न बरती गई और बचाव के जरूरी इंतजाम नहीं किए गए तो फेफड़ों (Lungs) को अधिक नुकसान हो सकता है। अन्य दिक्कतें भी बढ़ सकती हैं। शरीर के लिए खाना व पानी जितना जरूरी है उतनी ही जरूरी है हवा। पानी व खाने के बिना कुछ दिन शरीर चल सकता है लेकिन हवा के बिना व्यक्ति कुछ क्षण ही जीवित रह सकता है। हवा के जरिए जब शरीर में दूषित तत्त्व जाते हैं तो शरीर की भीतरी कोशिकाओं में संक्रमण से कई बदलाव आते हैं। इनमें सांस फूलना, घबराहट व चिड़चिड़ेपन की समस्या अहमहैं। कुछ समय में व्यक्ति अस्थमा, एलर्जी या सीओपीडी का रोगी हो जाता है।

सूक्ष्म कण से नुकसान
दस माइक्रोन्स से कम के पार्टीकुलेट मैटर नाक के जरिए सांस व फिर गले से होते हुए फेफड़ों के महीन छिद्रों में पहुंचते हैं। यदि इनका आकार 2.5 से कम है तो ये सांस के जरिए ब्लड में जाने वाली ऑक्सीजन में मिलकर फेफड़े के आसपास संक्रमण का खतरा बढ़ाते हैं। इन कणों में भी अति सूक्ष्म कण होते हैं जो फेफड़े की सबसे अहम झिल्ली तक पहुंचकर खून के रास्ते दिल व दिमाग तक पहुंचकर नुकसान करते हैं। ऐसा होने पर अचानक हृदयाघात या ब्रेन हैमरेज के मामले बढ़ते हैं। ये कण लंबे समय से शरीर में जा रहे हैं तो फेफड़ों के साथ किडनी, लिवर और शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचता है।

04 में से एक बच्चे की मृत्यु वायु प्रदूषण और दूषित पानी के कारण हो जाती है (पांच साल की उम्र से कम के)। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार।

05 साल से छोटे बच्चों व बुजुर्गों के फेफड़े तुलनात्मक रूप से कमजोर होते हैं और संक्रमण फैलने का खतरा अधिक है।

10 माइक्रोन्स से कम के दूषित व सूक्ष्म कण सांस व गले से होते हुए फेफड़ों तक पहुंचते हैं।

सांस संबंधी दिक्कतों से बचाव के लिए नीम का पेड़ वरदान है। छोटी पत्तियों वाले पेड़ों में प्रदूषण कम करने की क्षमता रहती है। घर के पास हरे-भरे पेड़ रहने से प्रदूषण का स्तर कम रहेगा व रोग नहीं फैलेंगे।

इन कारकों से अधिक असर
सर्दी में ओजोन गैस कोहरे व ठंड के कारण ऊपर नहीं उठ पाती। ऐसे में छोटे कण हवा में तैरते हुए सांस के जरिए शरीर में जाते हैं। प्रदूषण के मुख्य कारक डीजलए पेट्रोल गाडिय़ों व फैक्ट्रियों से निकलने वाला
धुंआ है।

बच्चों को मिट्टी में खेलने दें
मिट्टी में खेलने से बच्चों को नहीं रोकना चाहिए। मिट्टी में मौजूद माइकोन्यूट्रिएंट्स से बच्चों की इम्युनिटी मजबूत होती है। इसके अलावा जो भी फल और सब्जी है उसे अच्छे से धोने के बाद ही पकाएं और खाएं क्योंकि केमिकल युक्त होने से शरीर की कोशिकाओं पर बुरा असर पड़ता है। हर व्यक्ति को फिट और सेहतमंद रहने के लिए योग और प्राणायाम के साथ हल्की-फुल्की एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए।

शुद्धिकरण : शरीर के भीतर जमा हो चुके विषैले तत्तवों को बाहर निकालकर भी रोगी को आराम पहुंचाया जाता है। इसमें पंचकर्म के साथ रोगी को वमन यानी उल्टी कराते हैं। विरेचन में रोगी को घी पिलाकर आंतों और दूसरे अंगों की सफाई की जाती है। शरीर की तिल्ली या सरसों तेल से मसाज कर भाप दिया जाए तो लाभ होता है।

मॉर्निंग वॉक
सुबह के समय सैर फायदेमंद है लेकिन प्रदूषण, धुंध या कोहरे में टहलना सही नहीं। इसलिए सुबह के समय टहलने से बचें। विशेषकर वे लोग जो अस्थमा या सीओपीडी के रोगी हैं। इसके बाद भी टहलने या किसी अन्य काम से बाहर जाते हैं तो सावधानी के तौर पर एन-95 मास्क पहनकर ही निकलें।

आयुर्वेद
हवन सामग्री में मौजूद एंटीबैक्टीरियल तत्तव प्रदूषण से बचाव में सहायक हैं। तुलसी इम्युनिटी बूस्टर है। एक गिलास पानी में पत्ता डालकर दिनभर थोड़ा-थोड़ा पीएं। प्रदूषण का स्तर अधिक है तो पानी में नीम का पत्ता डाल हल्का गरम कर गरारे करने से संक्रमण दूर होता है। च्यवनप्राश भी खा सकते हैं।