अधिक वजन के साथ जिन्हें हृदय व कई अन्य रोगों का खतरा बना रहता है उनमें रक्तदान से वजन में कमी आती है। रक्तदान प्रक्रिया के दौरान शरीर में नई कोशिकाओं बनती हैं जो वसा को जमने से रोकती हैं। डॉक्टरी सलाह से इस प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं।
रक्तदान नई रक्त कोशिकाएं बनाने और शरीर में आयरन तत्त्व को संतुलित रखने में मददगार है। ऐसे में नियमित रक्तदान यानी हर तीन माह में ब्लड डोनेट करने से कैंसर और लिवर में लौह तत्त्व की मात्रा बढ़ने का खतरा कम हो जाता है। साथ ही इससे पेन्क्रियाज का कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है। हृदय और रक्त संबंधी विकारों से बचाव होता है।
देश में रक्तदान करने वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी का एक मुख्य कारण कई गलत धारणाएं है। रक्तदान के लिए एक आदर्श व्यक्ति का वजन 45 किग्रा से अधिक व व्यक्ति की उम्र 18 से 65 साल के बीच होनी चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति में लगभग 10 इकाईयां (5-6 लीटर) रक्त होता है। हर 90 दिन में रक्तदान कर सकते हैं। इससे शारीरिक कमजोरी नहीं होती क्योंकि निकले खून की आपूर्ति शरीर 1-2 में खुद-ब-खुद कर लेता है।
– रक्तदान करने वाले व्यक्ति को सलाह देते हैं कि वह रक्तदान के बाद 4-5 घंटे के लिए भारी शारीरिक गतिविधि न करे ताकि शरीर से ली गई खून की भरपाई के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
– जो लोग एड्स और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं उन्हें रक्तदान नहीं करना चाहिए।
– यदि किसी व्यक्ति ने किसी बीमारी के लिए टीकाकरण कराया है या कोई सर्जरी करवाई है या कैंसर, मधुमेह, ठंड और फ्लू से पीड़ित है तो रक्तदान करने से पहले डॉक्टरी सलाह जरूर लें।
– गर्भवती महिलाओं को रक्तदान नहीं करना चाहिए। इससे उनके गर्भ में पल रहे शिशु पर बुरा असर पड़ सकता है।