
Expected treatment of corona set on gene editing technique
कोरोनोवायरस का टीका अथवा संभावित दवा बनाने के लिए वैज्ञानिकों की निगाहें अत्याधुनिक जीन एकडिटिंग तकनीक क्रिस्पर भी टिकी हुई है। इस तकनीक का उपयोग कर साल 2018 में चीन के एक जीन विज्ञानी ने अपनी बेटी के अनुवांशिक रोग को दूर करने में सफलता पाई थी। क्रिस्पर तकनीक से शरीर के जीन की एडिटिंग कर वैज्ञानिक एचआईवी और फ्लू जैसे खरतनाक संक्रमणों के खिलाफ हमें स्थायी सुरक्षा देने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को रि-डिजायन करने में कामयाब हो गए हैं। चूहों पर प्रयोगशाला में किए कुछ परीक्षणों से पता चलता है कि इस तकनीक का उपयोग लोगों को वायरस के उन विशेष वर्ग से सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है जिनके लिए अभी तक कोई प्रभावी टीके उपलब्ध नहीं हैं।
वॉशिंगटन के सिएटल में फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर में जस्टिन टेलर और उनके सहयोगियों ने बी-कोशिकाओं नामक सफेद रक्त कोशिकाओं पर सीआरआईएसपीआर या क्रिस्पर तकनीक का इस्तेमाल किया। ये हमारी प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं और विशेष रूप से बैक्टीरिया पर हमला करने वाले एंटीबॉडी प्रोटीन का स्राव करते हैं। उनकी टीम ने तथाकथित बी कोशिकाओं के डीएनए को संपादित करके कृत्रिम रूप से उन्नत और लंबे समय तक चलने वाले एंटीबॉडी बनाने के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। हालांकि अभी वैज्ञानिकों को यह साबित करना होगा कि तकनीक सुरक्षित है और इसमें कई साल लगेंगे। लेकिन अगर यह इंसानों के लिए सुरक्षित साबित होती है तो भविष्य में अस्पताल का दौरा, विकलांगता और हर साल होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। बी कोशिकाएं एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं जो हमें खतरनाक रोगजन कों से बचाती हैं।
Published on:
17 Apr 2020 08:10 pm
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