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जानिए टेढ़े-मेढ़े दांतों के लिए क्या है बे्रसेज लगवाने की सही उम्र

टेढ़े-मेढ़े दांतों को सही आकार देने के लिए ब्रेसेज का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इसके बेहतर परिणाम के लिए कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। जानें कैसे रखें दांतों का ख्याल...

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जयपुर

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Vikas Gupta

May 24, 2019

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टेढ़े-मेढ़े दांतों को सही आकार देने के लिए ब्रेसेज का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इसके बेहतर परिणाम के लिए कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। जानें कैसे रखें दांतों का ख्याल...

बच्चों या बड़ों में पाई जाने वाली टेढ़े-मेढ़े दांत या जबड़ों के छोटे-बड़े आकार की समस्या को ऑर्थोडॉन्टिक प्रॉब्लम कहते हैं। इसके लिए बे्रसेज का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये दांतों के विकास के दौरान ही उन्हें सही आकार देने में मदद करते हैं। आइये जानते हैं इस बारे में-

कब जाएं डॉक्टर के पास -
अमरीकन एसोसिएशन ऑफ ऑर्थोडॉन्टिक्स के अनुसार, दांतों की समस्या में बच्चों को 7-8 वर्ष की उम्र में दंत रोग विशेषज्ञ को दिखा देना चाहिए। इस उम्र में उनके दांतों का विकास हो रहा होता है जिससे दांतों को आकार देने में आसानी होती है। दांत व जबड़ों की स्थिति देखने के बाद ही बे्रसेज या अन्य तरीके अपनाए जाते हैं। इसके लिए इलाज की सही उम्र भी तय की जाती है। उम्र के साथ-साथ निचला जबड़ा बड़ा है तो 8-10 वर्ष और ऊपरी जबड़ा बड़ा है तो 10-20 वर्ष में बच्चे को डॉक्टर को दिखाएं।

उम्र के अनुसार इलाज
रिमूवेबल प्लेट -
सही उम्र : 8-9 साल। इस प्लेट को बच्चे खुद भी लगा-उतार सकते हैं।
जरूरत: अंगूठा चूसने, चूसनी को मुंह में रखने जैसी आदत हो तो उनमें प्रिवेंटिव रूप से भी लगते हैं।know-what-is-the-right-age-for-applying-the-braces-for-crooked-teeth

फिक्स प्लेट -
विभिन्न तरह के मेटेलिक या सेरेमिक ब्रेकेट और वायर से बने बे्रसेज व तारों का प्रयोग होता है।
जरूरत: यह किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं। इसे एक से डेढ़ साल तक दांतों पर फिक्स कर दिया जाता है ताकि दांत या जबड़ा सीधा हो सके।

सर्जिकल -
ब्रेसेज लगाने के बाद यदि समस्या सही नहीं होती है तो सेजाइटल स्प्लिट ऑस्टियोटॉमी (एसएसओ) या डिस्ट्रेक्शन ऑस्टियोजिनेसिस सर्जरी करते हैं।
जरूरत: 25-30 वर्ष की उम्र में दांतों की ग्रोथ रुक जाती है। ऐसे में जबड़े का आकार छोटा या बड़ा होने के हिसाब से हड्डी को काटा या आगे-पीछे किया जाता है।

कब लगवाएं बे्रसेज -
ऊपर-नीचे के जबड़े का आपस में न मिलना, दोनों जबड़ों को मिलाते समय जीभ या मुंह की आंतरिक त्वचा का कटना, भोजन चबाने में परेशानी, बोलने में तुतलाहट व नाक की बजाय मुंह से सांस लेना शामिल हैं।

यह बरतें सावधानी -
भोजन के बाद अच्छे से मुंह साफ करें। सुबह और शाम सही से और नियमित तौर पर ब्रश करें।
चने, पान, सुपारी, टॉफी, चॉकलेट, भुट्टे जैसी सख्त चीजें न खाएं वर्ना बे्रसेज को नुकसान पहुंच सकता है।
दांतों पर लगे हुए ब्रेकेट और तार नाजुक होते हैं। इन्हें हाथों से न छुएं। ब्रेसेज हटने के एक साल बाद तक रिटेनर पहनकर रखें ताकि जिस सही स्थिति में टेढ़े दांत आए हैं वह स्थायी बन सकें। इसमें लापरवाही न बरतें।

ऐसे तैयार होता है ब्रेसेज -
विशेषज्ञ दांतों व जबड़े की फोटो लेकर बत्तीसी का सांचा (मॉडल) तैयार करते हैं।
कुछ जरूरी जांचों के बाद ऑर्थोपेंटोमोग्राम, साइफैलोग्राम व सीवीसीटी एक्स-रे होता है।
सभी डाटा लेने के बाद उसे कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर में फीड कर देते हैं। यह सॉफ्टवेयर वर्तमान व भविष्य में जिस तरह का जबड़ा या दांत हो उसके अनुसार दो फोटो बनाकर सही तकनीक चुनता है।
इसके बाद दांतों को सीधा करने के लिए दांतों को सेपरेट कर बे्रसेज लगाए जाते हैं। कुछ मामलों में विशेष प्रकार के प्लास्टिक से बने एलाइनर (बिना तार वाले) भी लगाए जाते हैं। इन्हें कम्प्यूटर के जरिए तैयार किया जाता है।
इसके अलावा ग्रोथ मॉडिफिकेशन एप्लाइंसेज जैसे एक्टिवेटर (नीचे का जबड़ा छोटा हो तो), ट्विनब्लॉक या फेसमास्क (ऊपर का जबड़ा यदि अंदर की तरफ धंसा हो तो) प्रयोग होता है।
30-40 की उम्र के ऐसे मरीज जिनमें ऑर्थोडॉन्टिक समस्या हो उनमें एडल्ट ऑर्थोडॉन्टिक्स लगाते हैं। इन ब्रेसेज को दांतों को पीछे की तरह लगाते हैं।