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आ अब लौट चलें आयुर्वेद की ओर

Published: Oct 05, 2018 04:48:06 am

आयुर्वेद के जीवन-उपयोगी गुणों पर जयपुर के वैद्य आदिनाथ पारीक बताते हैं कि भारत में रहकर तो आयुर्वेद से हम भाग नहीं सकते…

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आयुर्वेद के जीवन-उपयोगी गुणों पर जयपुर के वैद्य आदिनाथ पारीक बताते हैं कि भारत में रहकर तो आयुर्वेद से हम भाग नहीं सकते। चाहे जितना भी एलोपैथी या दूसरी चिकित्सा पद्धतियों की ओर चले जाएं, आखिर में आयुर्वेद की शरण में आना पड़ता है। आयुर्वेद ही जिससे सदियों से भारतवर्ष बीमारियों से मुक्त रहा है। घर में मौजूद नानी-दादी के आसान नुस्खे भी तो आयुर्वेद की ही उपज हैं। इनकी भला कैसे उपेक्षा कर सकते हैं?

कहते हैं एक इंसान जीवन की कमाई का लगभग 40 फीसदी हिस्सा बीमारियों की रोकथाम और इलाज में खर्च होता है। ऐसे में जब हम पूरी आबादी के लिए पेट भर भोजन उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं तो तो महंगे और जटिल तरीकों से सेहत बनाए रखने की बात पूरी तरह बेमानी है। यही समय है कि हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा।

 

उन तरीकों और पद्धतियों को अपनाना होगा, जिसमें सिर्फ तन नहीं संपूर्ण जीवन की भलाई समाई हुई है। शरीर पर हर तरह का प्रयोग कर हार मानने के बाद अब समय आ गया है कि मन और आचरण से हमें आयुर्वेद की ओर लौटना ही होगा।

‘आयुर्वेद’ है ‘जीवन का ज्ञान’

आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह अथर्ववेद का विस्तार है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। ‘आयुर्वेद’ का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’ और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है।

यह चिकित्सा प्रणाली केवल रोग-उपचार के नुस्खे ही उपलब्ध नहीं कराती, बल्कि रोगों की रोकथाम के उपायों के विषय में भी विस्तार से चर्चा करती है। आयुर्वेद हमारे इतना नजदीक है कि उसे रोजमर्रा के जीवन से अलग करना संभव ही नहीं है। इसका अर्थ हुआ जीने की अद्भुत कला आयुर्वेद हमें न केवल रोगों से बचाती है बल्कि जीने की कला भी सिखाती है।

पीढ़ी दर पीढ़ी मिली ‘आयुर्वेद’

जब इस संसार की रचना हुई तभी से प्रत्येक जीव भूख, प्यास, नींद, शरीर और मन के रोगों को दूर रखने के प्रयास कर रहा है। हम अपने आसपास ही देखते हैं की गला खराब होने पर, खांसी होने पर, जुकाम होने पर ठंडी वस्तुओं को सेवन न करने को कहा जाता है। अदरक-तुलसी की चाय पीयो, दूध और हल्दी लो जैसे नुस्खे हर कोई मुफ्त में बांटता फिरता है। किसी पदार्थ की प्रकृति ठंडी है या गर्म, ये सभी आयुर्वेद के नियम हैं जो हमें पीढ़ी-दर पीढ़ी अपने बड़े-बुजुर्गो से मिले हैं।

अपने घर या उसके आसपास अनेक ऐसे पदार्थ मिल जाते हें जो कि हम सदियों से औषधियों के रूप में प्रयोग करते हैं। जन सामान्य के लिए इसी आसान, प्रभावी, सस्ती, सुलभ और सक्षम पद्धति का नाम आयुर्वेद है। इसीलिए महर्षि चरक ने चरक संहिता में कहा है कि जो विद्या अच्छाई, बुराई, दुख सुख, समय और लक्षण का ज्ञान कराए वह आयुर्वेद है।

आयुर्वेद अपनाने के सात मुख्य कारण


पहला

आयुर्वेद की दवाएं किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त करती है, जबकि एलोपैथी की दवाएं किसी भी बीमारी को केवल कंट्रोल में रखती है।

दूसरा

आयुर्वेद का इलाज हजारों वर्षो पुराना है, जबकि एलोपैथी दवाओं की खोज कुछ सदियों पहले हुई है।

तीसरा

आयुर्वेद की दवाएं घर में, पड़ोस में या नजदीकी जंगल में आसानी से और सहज उपलब्ध हो जाती है, जबकि एलोपैथी दवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती।

चौथा

आयुर्वेदिक दवाएं बहुत ही सस्ती है या कहें कई तो मुफ्त की है, जबकि एलोपैथी दवाओं कि कीमत बहुत ज्यादा है। एक आदमी की जिंदगी की कमाई का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा बीमारी और इलाज में ही खर्च होता है।

पांचवां

आयुर्वेदिक दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है, जबकि एलोपैथी दवा को एक बीमारी में इस्तेमाल करो तो दूसरी बीमारी अपने आप जडं़े मजबूत करने लगती है।

छठा

आयुर्वेद में सिद्धांत है कि इंसान कभी बीमार ही न हो और इसके छोटे-छोटे उपाय है जो बहुत ही आसान है, जिन्हें अपनाकर हम स्वस्थ रह सकते है, जबकि एलोपैथी के पास ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है।

सातवां

बड़ा कारण है कि आयुर्वेद का 85 फीसदी हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और केवल 15 फीसदी हिस्सा में आयुर्वेदिक दवाइयां आती है, जबकि एलोपैथी का 15 फीसदी हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए है और 85 फीसदी हिस्सा इलाज के लिए है।

स्वस्थ रहने का फंडा आयुर्वेद के अनुसार


जागने का समय : सुबह तीन से छह के बीच। पढऩे, ध्यान, योग व व्यायाम के लिए यह उत्तम समय है
पानी पीएं : सुबह उठने के तुरन्त बाद क्षमता अनुसार पानी पीएं। इससे मल शुद्ध होती है।
मलमूत्र त्याग : मलमूत्रादि त्याग के लिए जाएं इसे किसी सूरत में रोकना नहीं चाहिए।
दांत व चेहरे को धोएं : दांतों व जीभ को प्रतिदिन साफ करें। इसके बाद चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारें
आंख पर मारे छीटें : ठंडे पानी से आंखों पर छीटें मारें। आंख की रोशनी बढ़ाने और आंखों को रोग से बचाने के लिए नित्य त्रिफला के पानी से आंख धो सकें तो बेहतर।
खाने के बाद : खाने के बाद लौंग, इलायची मिला मीठा पान खाने से मुख शुद्ध और भोजन ठीक से पचता है।

आयुर्वेद की ओर देख रही दुनिया

पूरे विश्व के लोग अब एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से ऊब चुके हैं। इस पद्धति के दुष्प्रभावों ने नई बीमारियों को जन्म दे दिया है। भविष्य की चिकित्सा एलोपैथी पर नहीं बल्कि आयुर्वेद पर निर्भर होगी।

आयुर्वेद हमारे ऋषियों की अमूल्य धरोहर है और आने वाले समय में यही चिकित्सा की प्रमुख पद्धति होगी। आयुर्वेद से विश्व का कायाकल्प होगा।

आयुर्वेद का उद्देश्य उन्हें यह बताना है कि हमारे जीवन को बीमारी और बुढ़ापे आए बगैर किस तरह से प्रभावित, विस्तृत, समृद्ध, और अंततोगत्वा, नियंत्रित किया जा सकता है।

भारतीय आयुर्वेद एलोपैथी के मुकाबले कहीं अधिक प्रभावशाली है और आयुर्वेद को यदि सही तरीके से प्रोत्साहित किया जाए तो इसमें आइटी क्षेत्र के बराबर निवेश लाने की क्षमता है।

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