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इस मौसम में नकसीर आना है आम बात,घरेलू उपचारों से भी मिल सकती है राहत

गर्मी की शुरुआत के साथ ही कुछ लोग नकसीर आने की शिकायत से परेशान हो जाते हैं। अचानक नाक से खून बहना शुरू हो जाता है।

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नकसीर

इस मौसम में नकसीर आना है आम बात,घरेलू उपचारों से भी मिल सकती है राहत

गर्मी की शुरुआत के साथ ही कुछ लोग नकसीर आने की शिकायत से परेशान हो जाते हैं। अचानक नाक से खून बहना शुरू हो जाता है। चरक संहिता में इस रोग को ऊध्र्व रक्तपित्त के नाम से वर्णित किया है। इस रोग को महागद अर्थात एक बड़े रोग के रूप में ग्रहण किया है और कहा है कि इस रोग की तुरन्त चिकित्सा करनी चाहिए।

व्यवहार में एक बार इसकी शिकायत होने पर इसके बहुत से रोगी चिकित्सा के लिए कम ही चिकित्सक के पास जाते हैं। अधिकतर इसकी शिकायत बच्चों में मिलती है जो कि उनके माता पिता की चिन्ता का कारण बनती है।

ये हो सकते हैं कारण
जो व्यक्ति गरम, तीखी, खट्टी व नमकीन वस्तुएं अधिक खाता है, तेज धूप में घूमता है, शरीर के अन्दर जलन पैदा करने वाले भोजन का सेवन करता है उसके नाक से खून निकलने की सम्भावना बढ़ जाती है। चिकनाई युक्त गर्म खाना इस रोग की उत्पत्ति में विशेष कारण है। पित्त के बढ़ जाने से दूषित रक्त के रूप में नाक से बाहर निकल जाता है। रोगी बलवान हो, रोग पुराना न हो तो आसानी से ठीक हो जाता है। यही रोग अगर शीत काल में पैदा हुआ हो तो आसानी से ठीक हो जाता है और गर्मी में पैदा हुआ रोग कठिनाई के साथ ठीक होता है। ऐसे में अगर घरेलू उपचारों के बावजूद भी राहत नहीं मिले तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना ना भूलें।

ये हो सकते हैं उपचार
प्राय: यह रोग अपने आप ही कुछ समय बाद शान्त हो जाता है और शान्त होने के उपरान्त यह अवस्था बार बार न हो इसके लिए उसे अपने खान-पान का ध्यान रखना चाहिए।
रोगी अगर बलवान हो तो शुरुआती अवस्था में खून रोकना नहीं चाहिए।
नकसीर आने के बाद उपवास रखें। उपवास के बाद सत्तू को पानी में घोल कर पीएं।
धान के चूर्ण में गाय का घी व शहद मिला कर सेवन करें।
अंगूर का रस, गाय का दूध, ईख का रस, दूर्वा का रस अथवा प्याज के रसे की दो बूंदे नाक में डालने से नकसीर में लाभ मिलता है।
खट्टी वस्तु, यद्यपि इस रोग में मना होती हैं अनार व आमले का प्रयोग इसमें विशेष लाभकारी होता है।
मूंग, मसूर, चना, मोठ, अरहर की दाल का सूप बनाकर पीएं।
पटोल, निम्ब, बांस, प्लक्ष, चिरायता , कांचनार के फूल, को पानी में उबाल कर व घी से सिद्ध कर पीएं।
मुनक्का व छोटी हरड़ के क्वाथ में शहद व शर्करा मिलाकर पीने से नकसीर आने से लाभ होता है।
चाय-कॉफी या गर्म पेय का सेवन ना करें, छाछ, दही, लस्सी या ठंडे पेय का लगातार सेवन करते रहें।

यह भी है चिकित्सा
चरक संहिता में लिखा है कि प्रकृति भी इस रोग की चिकित्सा में सहायक है। नदी, तालाब के किनारे रहना, हिमालय की गुफाओं में रहना जिस तालाब में कमल अधिक खिले हों वहां वास करना भी इस रोग की चिकित्सा है। चांदनी रात में सोने से भी रोग शान्त हो जाता है। कमल व केले के पत्तों को बिछौना बनाने से भी गरमी में राहत मिलती है।