14 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कई जिंदगियों के लिए उपहार है अंगदान

एक 34 वर्षीय सैनिक, बीरू कुमार जब अस्पताल में आए तो वे जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। उन्हें लिवर सिरोसिस हो गया था और डॉक्टरों ने प्रत्यारोपण...

3 min read
Google source verification

image

Mukesh Kumar Sharma

Sep 04, 2018

organ Donation

organ Donation

एक 34 वर्षीय सैनिक, बीरू कुमार जब अस्पताल में आए तो वे जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। उन्हें लिवर सिरोसिस हो गया था और डॉक्टरों ने प्रत्यारोपण की सलाह दी थी। बीरू कुमार के मामले में पहली बात तो यह थी कि नया लिवर भारतीय कानून के अनुसार परिवार के किसी सदस्य से आना चाहिए, दूसरा दाता उस समूह से आना चाहिए जो प्राप्तकर्ता के अनुकूल हो।

लेकिन इस मामले में एक बड़ी समस्या यह थी कि बीरू कुमार की मां की उम्र अधिक थी इसलिए अंगदाता के रूप में उनके विकल्प पर विचार नहीं किया गया। ऐसे में उनके पास सिर्फ इंतजार के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रह गया था। आज हर अस्पताल में आपको ऐसे कई मामले दिख जाएंगे जो बीरू कुमार की तरह हैं, जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की अधिक जरूरत है लेकिन असहाय होकर वे सिर्फ मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

कौन होता है दाता ?

बीरू कुमार और लाखों ऐसे रोगियों की समस्या का समाधान मृत व्यक्तियों के अंगदान से हो सकता है। मृत व्यक्तियों के अंगों को दान करने का प्रचलन पश्चिमी देशों में अधिक है लेकिन भारत में न के बराबर। अंगदान में एक व्यक्ति के स्वस्थ अंगों और ऊत्तकों को दूसरे व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जाता है। ये अंग केवल किसी व्यक्ति की स्वाभाविक मृत्यु के बाद या जब व्यक्ति को ब्रेन डेड या मानसिक रूप से मृत घोषित किया जाता है तभी लिए जाते हैं।

ब्रेन डेड में अंगदान से एक व्यक्ति सात उन लोगों की मदद कर सकता है जो विभिन्न रोगों के गंभीर चरणों पर पहुंच चुके हैं या जिनके किसी अंग ने काम करना बंद कर दिया है। किडनी, हृदय, लिवर, आंत, फेफड़े, हड्डियां, बोन मैरो, त्वचा और कॉर्निया सभी का दान किया जा सकता है।

मैं दाता कैसे बनंू?

अंं गदान का पंजीकरण कराने के लिए भले ही व्यक्तिकी उम्र 18 साल या इससे अधिक होनी चाहिए लेकिन परिजनों की सहमति से किसी भी उम्र के व्यक्ति के अंग दूसरे लोगों में प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं। 80-90 साल की उम्र वाले व्यक्ति के लिवर और किडनी भी दूसरे लोगों की जान बचा सकते हैं। अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षारत मरीजों की कुछ चिकित्सकीय स्थितियों का मिलान करने के बाद जिस मरीज को उपयुक्तउम्मीदवार माना जाता है, उसे ही अंग प्रत्यारोपित किया जाता है।

एक दाता के रूप में अपनी उम्र, ब्लड गु्रप आदि के बारे में विस्तृत जानकारियां देकर अस्पताल में पंजीकरण कराने पर आपको एक कार्ड दिया जाएगा जिसमें आपको पंजीकृत अंगदाता के रूप में प्रमाणिकृत करने का उल्लेख होता है। इस कार्ड को हमेशा अपने साथ रखें और परिवार के सदस्यों को भी अपने निर्णय के बारे में सूचना दे दें कि आपने अपने अंगों को दान करने की सहमति दे दी है।

दो तरह से होती है मदद

एक होता है अंगदान और दूसरा होता है टिश्यू का दान। अंगदान के तहत किडनी, फेफड़े, लिवर, दिल, आंतें, पैनक्रियाज आदि तमाम अंदरुनी अंगों का दान होता है। वहीं टिश्यू दान के तहत आंखों, हड्डी और त्वचा का दान आता है। दाता से निकालने के बाद हृदय और फेफ ड़ों को लगभग 4 घंटे, लिवर को 12-18 घंटे और अग्नाश्य को लगभग 8-12 घंटे तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

जागरुकता की जरूरत

भारत में अंगदान को लेकर जागरुकता और ब्रेन डेथ के बारे में जानकारी का अभाव है जिसके चलते लोग इसके लिए पहल नहीं करते। आश्चर्यजनक रूप से अभी भी 99.9 प्रतिशत अंगदान परिवार के किसी जीवित सदस्यों के द्वारा ही किया जाता है। यह पश्चिमी देशों के बिल्कुल विपरीत है, जहां 90 प्रतिशत से अधिक अंग मृत दाताओं से प्राप्त होते हैं। डोनेटलाइफ इंडिया डॉट ओआरजी साइट के अनुसार भारत में 30 जरूरतमंद लोगों में से एक को ही किडनी मिल पाती है।

इसी तरह देश में 25 हजार लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है लेकिन उपलब्धता महज 800 की ही हो पाती है। अंगदान के प्रति आम जनता में जागरुकता बढ़ाने के लिए मृत व्यक्तियों के अंगदान की शिक्षा और दृष्टिकोण में बदलाव लाने की आवश्यकता हैै। ब्रेन डेड घोषित किए गए व्यक्ति के अंगदान के लिए रिश्तेदारों को औपचारिक सलाह और सहायता देने की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।