रोग के कारण
आनुवांशिकता अहम है। ज्यादातर मामलों में बार-बार रक्त चढ़वाने, रक्त व लिवर संबंधी समस्या होने या अधिक शराब पीने की आदत से भी यह रोग होता है। महिलाओं में माहवारी व गर्भावस्था जैसी अवस्थाओं के कारण रक्त की कमी रहती है। इसलिए पुरुषों में रोग की आशंका ज्यादा है।
लक्षण
40 वर्ष की उम्र से पहले अतिरिक्त आयरन किसी भी व्यक्ति में धीमी गति से जमता है और जब तक यह अधिक मात्रा में जमा न हो जाए तब तक इसके लक्षण नहीं दिखते। प्रारंभिक लक्षण अस्पष्ट होते हैं जिससे कई बार इस रोग को अन्य रोग समझकर इलाज चलता है। थकान, कमजोरी, जोड़दर्द आम हैं।
कारगर जांचें
मेडिकल हिस्ट्री के अलावा रक्त में आयरन का स्तर जानने के लिए ब्लड टैस्ट करते हंै। ज्यादातर मामलों में बीमारी एक जीन के कारण होती है जो एक पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। जेनेटिक काउंसलर से सलाह लेकर जान सकते हैं कि घर में अन्य किसी को यह परेशानी है या नहीं।
इलाज
फ्लेबोटोमी उपचार रक्तदान की तरह है जो नियमित होता है। वहीं चेलेशन थैरेपी में खास दवा को रक्तधमनियों में सुई के जरिए पहुंचाकर आयरन की अतिरिक्त मात्रा को कम करते हैं। फ्लेबोटोमी न लेने वालों के लिए यह मददगार है। इससे अतिरिक्त आयरन तेजी से व सुरक्षित रूप में घटता है।
बचाव: जरूरी नहीं कि परिवार में किसी को यह रोग है तो आपको भी होगा। जब तक शरीर में रोग का कारक जीन नहीं है तब तक इसकी आशंका नहीं है। डॉक्टर या जेनेटिक काउंसलर से जीन टैस्टिंग के अलावा लक्षणों पर नजर रखें।
ऐसे करें घर पर देखभाल
कम आयरन वाले भोजन या पेय पदार्थों को नियमित खाएं व पीएं। शराब आदि से तौबा करें।
विटामिन-सी से युक्त ज्यादातर खाद्य पदार्थों में आयरन होता है। इसलिए ऐसे विटामिन-सी वाली प्राकृतिक चीजें खाएं जिनमें आयरन कम या न के बराबर हो। जैसे कुकिंग ऑयल, चीनी आदि रोजाना २०० मिग्रा से ज्यादा न लें।
फ्लेबोटोमी उपचार ले रहे हैं तो भोजन में आयरन की मात्रा कम रखें। इसके लिए मीट, हरी पत्तेदार सब्जियां, बींस, किशमिश कम खाएं।
चाय-कॉफी भी मददगार हो सकती हैं। इससे शरीर भोजन से कम मात्रा में आयरन ग्रहण करेगा। इन्हें पीने से उपचार नहीं बदलेगा।
भोजन पकाने के लिए लोहे के बर्तन काम में न लें क्योंकि इनमें खाना पकाते समय आयरन भोजन में मिल सकता है।
50 % मामलों में खानपान में खयाल रख रोग से बच सकते हैं।