ये हैं कारण
धूम्रपान, शराब, तंबाकू या खैनी ओरल कैंसर का कारण बनते हैं जिससे मुंह, गले व गर्दन के हिस्से में कैंसर की कोशिकाओं को निर्माण होने लगता है।
मुंह-गले कैंसर के लक्षण
होंठ, मसूढ़े, गाल की झिल्ली, जीभ या तालू में हुए घाव को भरने में यदि तीन हफ्ते या इससे ज्यादा समय लगे तो कैंसर की आशंका रहती है। ऐसे में घावों से रक्तस्त्राव और भोजन निगलने में दिक्कत, आवाज में खरखराहट महसूस होना व गर्दन में गांठें बनती हैं।
ध्यान रखें
बीमारी बढ़ाने वाले कारणों से दूरी बनाएं। संतुलित आहार के साथ ताजे फल व सलाद लें। नियमित व्यायाम करें। दर्पण में मुंह का परीक्षण करते रहें। मुंह व गले की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।
जांच व इलाज
बायोप्सी, एमआरआई व सीटी स्कैन से रोग की जांच करते हैं। फस्र्ट स्टेज में सिंगल मॉडिलिटी (सर्जरी या रेडियोथैरेपी) व गंभीर अवस्था में मल्टी मॉडिलिटी (सर्जरी, कीमोथैरेपी व रेडियोथैरेपी) इलाज होता है।
मुंह और गले के कैंसर से जुड़े भम्र और तथ्य
भ्रम : ऑपरेशन के बाद अंग विकृत दिखेगा।
तथ्य : अंग के विकृत होने की आशंका कैंसर किस जगह और किस स्टेज में इसका इलाज हुआ उसपर निर्भर करता है। आजकल कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजी से सर्जरी के बाद की विकृति को कम किया जा सकता है।
भ्रम : सर्जरी के बाद बोलने और भोजन व पानी निगलने में परेशानी होती है।
तथ्य : हां, ऐसा हो सकता है क्योंकि कैंसर प्रभावित हिस्से को हटाना ही एकमात्र उपचार रहता है। ऐसे में मरीज को खाने में व बोलने में दिक्कत हो सकती है। इसलिए प्रारंभिक अवस्था में ही इलाज करवा लेना सही रहता है।
भ्रम : इलाज के बाद नियमित कार्य नहीं कर सकता है व्यक्ति।
तथ्य : हां, मरीज अपने सभी नियमित कार्य कर सकता है बशर्ते जिस कारण परेशानी हुई थी उससे दूरी बनाए जैसे तंबाकू, धूम्रपान व शराब की लत।
३० वर्ष की आयु के करीब धूम्रपान और तंबाकू की आदत छोडऩे से इससे होने वाली बीमारी से मौत की आशंका ९० प्रतिशत तक कम हो जाती है।