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अस्पताल पहुंचने से पहले घायल का उपचार

हमारे देश में हर साल औसतन 30 लाख लोग सडक़ हादसों के कारण अस्पताल पहुंचते हैं। निमहांस (बेंगलुरू) के शोध (2010) के मुताबिक इनमें…

Aug 27, 2018 / 04:20 am

मुकेश शर्मा

injured

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हमारे देश में हर साल औसतन 30 लाख लोग सडक़ हादसों के कारण अस्पताल पहुंचते हैं। निमहांस (बेंगलुरू) के शोध (2010) के मुताबिक इनमें से करीब 20 फीसदी घायल उचित प्री हॉस्पिटल केयर यानी हादसे के बाद सडक़ पर ही सही फस्र्ट एड ना मिल पाने से बच नहीं पाते। इनमें सबसे ज्यादा संख्या 20-40 साल की उम्र वालों की होती है। जानते हैं प्री हॉस्पिटल केयर के सही तरीकों के बारे में –

गोल्डन आवर सबसे अहम

घायल की जान बचाने में गोल्डन आवर यानी हादसे से एक घंटे तक का समय सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। यदि इस दौरान घायल को मौके पर ही तुरंत सही इलाज मिल जाए और उसे उचित ढंग से अस्पताल पहुंचा दिया।

सबसे पहले सांस चेक करें

घायल की नाक के आगे हाथ रखें, यदि गर्म हवा आ रही है तो इसका मतलब है कि वह खुद सांस ले पा रहा है। छाती का मूवमेंट भी ऊपर-नीचे हो रहा है तो मानें कि सांसें चल रही हैं। नाक के पास अपना कान ले जाकर भी उसकी सांसों की आवाज सुनी जा सकती है।

फिर करवट से लेटाएं

सांसें चल रही हैं तो उसे करवट से लेटा दें। इससे उसके सांस लेने में अवरोध नहीं आएगा।

सीपीआर एवं हार्ट का रीससिटेशन

सांस नहीं चल रही है तो उसे कार्डियो पल्मोनरी रीससिटेशन (सीपीआर) दें। इसमें मुंह से मुंह लगाकर कृत्रिम सांस दें व दिल पर दोनों हाथों से दबाव दें ताकि दिमाग को ऑक्सीजन सही फ्लो से मिलती रहे। घायल को हार्ट अटैक की स्थिति में भी सीपीआर तात्कालिक इलाज होता है।

खून बह रहा है तो

कोई भी साफ सूती कपड़ा उस हिस्से पर अच्छे से बांध दें। खून हाथ या पैर से निकल रहा है तो कपड़ा बांधकर उस हिस्से को ऊपर की ओर उठा दें ताकि ज्यादा खून ना बहे। यदि घायल को मिर्गी का दौरा पड़े तो उसके आसपास भीड़ ना करें जिससे वह खुले में सांस ले सके। उसे करवट से लेटा दें और मुंह में कपड़ा डालें ताकि उसकी जीभ ना कटे व फौरन अस्पताल ले जाएं।

बेहोशी की हालत में

दोनों पैर ऊपर की ओर उठाएं ताकि दिमाग को ऑक्सीजन मिल सके।

सावधानी से उठाएं व लेटाएं

घायल को उठाते हुए ज्यादा हिलाएं-डुलाएं नहीं। किसी तख्त या हार्ड बोर्ड पर लेटाकर ही अस्पताल ले जाएं। शरीर व गर्दन को एकदम सीधा रखें। घायल को कार या ऑटो की सीट
पर सीधा लेटाएं। दोपहिया पर बैठाकर न ले जाएं। हो सकता हो रीढ़ की हड्डी में चोट हो। दस फीसदी घायलों में गर्दन की चोटों का उस वक्त पता नहीं चलता ।

फोन पर ये जरूर बताएं

सबसे पहले एंबुलेंस और पुलिस को सूचित करें। फिर घायल का पर्स, मोबाइल या पहचान की चीजें ढूंढकर परिजनों को सूचित करें।

इलाज में कानूनी अड़चन नहीं

पुलिस की पूछताछ व कानूनी झंझटों के डर से लोग घायलों की मदद को आगे नहीं आते लेकिन इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देश हैं कि सडक़ दुर्घटनाओं में ‘ट्रीटमेंट फस्र्ट’ को तवज्जो दी जानी चाहिए। पुलिस भी आपको अनावश्यक पूछताछ कर परेशान नहीं करेगी।

इन्हें हमेशा साथ रखें

गाड़ी में फस्र्ट एड किट हो। मोबाइल में घरवालों के नंबर मम्मी-पापा, हसबैंड-वाइफ या होम के नाम से सेव करें ताकि उन्हें आसानी से सूचित किया जा सके।

रोड सेफ्टी की मुहिम

सडक़ हादसों में घायलों को तुरंत सही इलाज व उचित तरीके से अस्पताल पहुंचाने के लिए राजस्थान में एक अच्छी पहल की गई है। नेशनल न्यूरोट्रॉमा सोसायटी एवं सेंटर फॉर रोड सेफ्टी, सरदार पटेल पुलिस यूनिवर्सिटी संयुक्तरूप से सडक़ किनारे के ढाबों, होटलों में काम करने वालों, थड़ी-दुकानों वालों व मजदूरों, दुर्घटना की आशंका वाले इलाकों में कार्यरत सोशल वर्कर्स और एंबुलेंस के ड्राइवरों को अस्पताल ले जाने से पहले के इलाज के बारे में प्रशिक्षित कर रहे हैं।

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