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उम्र के हिसाब से महिलाएं रखें सेहत का ख्याल, जानें ये खास बातें

यह जरूरी नहीं कि महिला के बिगड़ते स्वास्थ्य का ढलती उम्र में ही पता चले। उम्र के विभिन्न पड़ाव पर सेहत से जुड़े संकेतों की पहचान जरूरी है। जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें-

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जयपुर

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Vikas Gupta

Nov 03, 2019

उम्र के हिसाब से महिलाएं रखें सेहत का ख्याल, जानें ये खास बातें

Women should take care of their health according to age

महिला समाज और परिवार की धुरी है। परिवार के देखभाल में वो इतना रम जाती है कि अपनी सेहत को ही भूल जाती है। यह जरूरी नहीं कि महिला के बिगड़ते स्वास्थ्य का ढलती उम्र में ही पता चले। उम्र के विभिन्न पड़ाव पर सेहत से जुड़े संकेतों की पहचान जरूरी है। जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें-

खून शरीर का अहम हिस्सा होता है जो शरीर के सभी अंगों, कोशिकाओं और मांसपेशियों को जीवित और सक्रिय रखने का काम करता है। खून के लिए शरीर में आयरन बहुत जरूरी है। बच्चियां जब छोटी होती हैं तबसे ही उनमें आयरन की कमी नहीं होनी चाहिए। इसकी कमी उन्हें बढ़ती हुई उम्र में बीमार बना सकती है। आयरन से शरीर में लाल रक्त कणिकाएं बनती हैं जो रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करती हैं। पर्याप्त मात्रा में आयरन रहने से शरीर और दिमाग में रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है। बच्चियों को बढ़ती उम्र के साथ डॉक्टरी सलाह पर आयरन की गोली देनी चाहिए जिससे उनका विकास स्वस्थ युवती और एक मां के रूप में हो सके।

18-25 वर्ष की उम्र -
यह उम्र युवावस्था की होती है जिसमें अधिकतर लड़कियों की शादी हो जाती है। शादी के बाद आमतौर पर एनीमिया, माहवारी की अनियमितता, संक्रमण रोग, रिप्रोडक्टिव ऑर्गन इंफेक्शन और अनचाहे गर्भ के मामले अधिक देखे जाते हैं। 50 फीसदी लड़कियां शादी के बाद अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं बता पाती हैं जिससे बीमारी अधिक फैल जाती है। तकलीफ होने पर बिना देरी किए डॉक्टर को दिखाएं। लापरवाही से स्वास्थ्य संबंधी परेशानी अधिक बढ़ सकती है।

25-35 वर्ष की उम्र -
ये उम्र महिलाओं की वह अवस्था है जिसमें वे अपने साथ बच्चों और घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालती हैं। काम का बोझ अधिक होने से शरीर में ऊर्जा की कमी होती है। मानसिक दबाव बढ़ता है। इसी उम्र में हॉर्मोन असंतुलन से महिला का वजन तेजी से बढ़ता या घटता है। बाल झड़ने के साथ जोड़ों में दर्द और हड्डियां कमजोर होती हैं। इससे कमजोरी, चक्कर आना, काम में मन न लगना और हर वक्त थकान रहती है। गंभीर मामलों में घबराहट के साथ बेहोशी भी आती है।

35-50 वर्ष की उम्र -
उम्र का ये पड़ाव कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की शुरुआत का भी होता है। माहवारी में अनियमितता उम्र के इसी दौर में शुरू होती है। हॉर्मोनल असंतुलन की वजह से थायरॉइड और शरीर में सूजन और मोटापे की तकलीफ बढ़ती है। बच्चेदानी के मुंह का कैंसर भी इसी उम्र में अधिक होता है। बढ़ती उम्र के साथ शरीर भी कमजोर होता है जिससे मानसिक रोग होने का खतरा रहता है। ये उम्र अधिक देखभाल की होती है ताकि महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या न हो।

महिलाओं में होने वाले कैंसर -
सर्विक्स: सर्विक्स (गर्भाशय) का कैंसर महिलाओं में अधिक होता है। ह्यूमन पैपीलोमा वायरस के संक्रमण से यह बीमारी होती है। प्रमुख कारणों में कई पार्टनर्स से शारीरिक संबंध, सिगरेट पीना और गर्भ निरोधक दवाओं का अधिक इस्तेमाल है। इसमें रक्तस्राव के साथ सफेद डिस्चार्ज होता है। बीमारी जब गंभीर होती है तो पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द होता है। समय रहते इलाज शुरू कराया जाए तो मरीज की जान बच सकती है।

ओवेरियन कैंसर: यूट्रस (गर्भाशय) के दोनों तरफ नलियां होती हैं जिससे लगा अंडाशय होता है। इसी में अंडे तैयार होते हैं। निषेचन के बाद भू्रण बनता है। इसमें ही कैंसर सेल्स बनने पर ओवेरियन कैंसर होता है। शुरुआती लक्षणों में पेट में दर्द व सूजन, अपच और बैक पेन के साथ वजन भी तेजी से गिरता है।

ब्रेस्ट कैंसर: देश में इस कैंसर के मरीज सबसे अधिक हैं। ब्रेस्ट में गांठें बनना, खून या सफेद रंग का पानी निकलना, दर्द रहना, लाल रंग के चकत्ते पड़ना इसके शुरुआती लक्षण हैं। पहली स्टेज में इस रोग का बेहतर इलाज संभव है।

कैंसर से बचाव के लिए जांच -
21 की उम्र के बाद पैप स्मियर टैस्ट कराएं।
हर तीन साल में एक बार यह जांच करवाएं।
30 की उम्र से एचपीवी डीएनए टैस्ट कराएं।
40 की उम्र के बाद मैमोग्राफी जांच जरुरी है।
परिवार में आनुवांशिक समस्या है तो 35 की उम्र के बाद नियमित जांच करवाते रहना चाहिए

मां के साथ रोज समय बिताएं -
परिवार के हर सदस्य को घर की महिलाओं के साथ रोज कुछ समय बिताना चाहिए। बच्चे नौकरीपेशा या व्यस्त रहते हैं तो हफ्ते में एक दिन मां की सेहत को लेकर उनसे बात करनी चाहिए। मां के साथ बिताया गया कुछ पल उन्हें आंतरिक खुशी देता है जो उन्हें रोगों से लड़ने की क्षमता देता है। घर का माहौल खुशनुमा और उनकी बात को तवज्जों देकर उन्हें हैल्दी रखा जा सकता है।

1000 में से 120 ग्रामीण और 50 शहरी महिलाएं अपने हाइजीन का खयाल नहीं रखती हैं जिस वजह से उन्हें संक्रामक रोग होते हैं।

5000 में से 950 से अधिक महिलाओं को ब्लड प्रेशर संबंधी समस्या होती है। बावजूद इसके वे समय रहते लक्षणों को नहीं पहचान पाती हैं जिससे उन्हें कई तरह की समस्याएं होती हैं।

10% गर्भवती महिलाओं और स्तन पान कराने वाली माताओं का जरूरत के अनुसार हैल्दी डाइट नहीं मिलती है।

44,000 महिलाओं की मौत देश में गर्भावस्था में बरती जाने वाली लापरवाही से हर साल होती है।

68,906 महिलाओं की मौत गर्भाशय कैंसर से देश में होती है। 50 फीसदी मामले देरी से पता चलते हैं।

1000 में से 5 महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान किडनी संबंधी समस्या शुरू होती है जिसमें सिर्फ दो को ही समय पर इलाज मिल पाता है।

71% लड़कियों को पहली बार माहवारी आने से पहले निजी स्वच्छता की कोई जानकारी नहीं होती है जबकि 70 फीसदी महिलाओं के पास सैनेटरी पैड खरीदने तक के पैसे नहीं होते हैं।

10,000 में 500 महिलाएं में ही स्तन कैंसर का समय पर इलाज शुरू हो पाता है। स्तन कैंसर के लक्षणों को पहचानकर सही समय पर इलाज शुरू किया जाए तो पूरी तरह ठीक होना भी संभव है।