बोकारो के सतोष कुमार की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। वह अंतरराष्ट्रीय जूनियर फुटबॉल चैंपियनशिप में भारतिय टीम का हिस्सा रहे है, इसी के साथ ही राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियनशिप में झारखंड का प्रतिनिधित्व किया है। आज यह हालत है कि फुटबॉल के मैदान में अपने पैरों का जादू दिखाने वाले संतोष को बोकारो स्टील प्लांट में ठेके पर मजदूरी करके संतोष करना पड़ रहा है।
10 साल की उम्र में शुरू किया खेल…
संतोष बोकारो के सेक्टर-9 के शिव शक्ति कॉलानी में रहते है। दस साल की उम्र से ही फुटबॉल शुरू करने वाले संतोष को किस्मत ने हर मोड़ पर धोखा ही दिया है। पहले गरीबी में जीवन की शुरूआत की, फिर उनके पिता की मौत हो गई। जिम्मेदारी कंधों पर पड़ी तो घर खर्च चलाने के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग का काम शुरू किया। यहां भी मुकद्दर को संतोष की तरक्की पसंद नहीं आई। इसी बीच Coronavirus ने दस्तक दे दी। लॉकडाउन लगा तो अब पूरा धंधा ठप्प हो गया। आर्थिक तंगी झेल रहे संतोष को बोकारो स्टील प्लांट में ठेके पर मजदूरी शुरू करनी पड़ी।
इन प्रतियोगिताओं में मनवाया अपना लोहा…
संतोष फुटबॉल शुरू करने के पांच साल के अदर ही जिला और फिर राज्य स्तरीय खेल टीम का हिस्सा बने। वर्ष 1995 में सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल चैंपियनशिप जितने वाली टीम का भी वह हिस्सा रहे। 1997 में इजरायल में प्रतियोगिता हुई थी उसमें भी वह इंडियन टीम का हिस्सा थे। अन्य भी कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने अपना लोहा मनवाया। लेकिन आज सरकार की उदासीनता के चलते गोल करने वाले पैर, माल का बोझ उठा रहे है। बोकारो जिला फुटबॉल संघ की ओर से संतोष को नौकरी देने की मांग को लेकर वर्ष 2000 में राज्य सरकार के समक्ष आवेदन किया गया था। आज तक कुछ नहीं हुआ।
‘गोल्डन गर्ल’ बेच रही थीं सब्जी…
इससे पहले ‘गोल्डन गर्ल’ के नाम से मश्हूर झारखंड की एथलीट गीता कुमारी को भी परिवार के साथ सड़क पर सब्जी बेचते देखा गया था। उनकी तस्वीर सोशल मीडिया के जरिए सीएम तक पहुंची तो सरकार एक्शन में आई। सीएम के निर्देश के बाद खेल जारी रखने के लिए गीता को प्रशिक्षण की सुविधा के अलावा तीन हजार रुपए की मासिक स्टाइपेंड सुनिश्चित की गई और 50 हजार रुपए भी आर्थिक सहायता के तौर पर उपलब्ध करवाए गए।