मेंहदी हसन जब दुनिया को ही अलविदा कह गए:
सबके दिलों में राज करने वाले गजल सिंगर मेंहदी हसन अलविदा कह इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं। बता दें कि वह पाकिस्तान के कराची शहर के एक अस्पताल में 13 जून 2012 को इलाज के दौरान निधन हुआ था। सूत्रों की माने तो वह अपना ट्रीटमेंट भारत में कराना चाहते थे। लेकिन ज्यादा तबीयत बिगड़ने कि वजह से डॉक्टरों ने उन्हें सफर करने से साफ मना कर दिया था। इसी वजह से उनकी भारत आने की आखरी ख्वाहिश अधूरी रह गई।
हसन साहब की आवाज की लता मंगेशकर भी हैं कायल:
बता दें कि मेंहदी हसन के गले से निकले एक-एक शब्द से हर व्यक्ति आसानी से जुड़ जाता है। उन्होेंने अपनी कई खूबसूरत गजलों से लोगों को दीवाना बना दिया था। साथ ही मशहूर गायिका लता मंगेशकर भी हसन साहब की गजल को बेहद पसंद करती हैं। जिनकी आवाज में स्वयं सरस्वती विराजती हैं वो ये बात खुद कहतीं हैं कि ‘हसन साहब के गलें में स्वयं सरस्वती विराजमान हैं।’ गजल ‘पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जानें है’, हसन साहब की गाई हुई ये गजल आज वाजिब हो गई है। इसी गजल को लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने एक फिल्म में आवाज भी दी मगर हसन साहब का तो गजल गाने का अंदाज ही जुदा था।
भारत से अधिक लगाव था:
हसन साहब का भारत से अधिक लगाव भी था उन्हें जब भी भारत से बुलावा आता रहा तब-तब उन्होंने अपने गजलों की महफिल सजाई। मेंहदी हसन ने सदैव भारत-पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और शांति दूतावास की भूमिका निभाई। और जब-जब उन्होंने भारत कि यात्रा कि तब-तब दोनों देशों में तनाव भी कम हुआ। हसन साहब को उनकी गायकी के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है।
भारत के मूल निवासी रहे मेंहदी हसन:
मेहंदी हसन भारत के ही मूल निवासी थे। उनकी जन्मभूमि राजस्थान के जोधपुर जिला का क्षेत्र लूना है, जिसकी सरजमीं पर उनका जन्म 18 जुलाई, 1927 को हुआ था। हसन के पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा इस्माइल खान दोनों ध्रुपद गायक थे। बता दें कि बचपन में गायन के साथ-साथ उन्हें पहलवानी का भी काफी शौक था। हसन साहब को गायन विरासत में मिला था। उनके दादा इमाम खान बड़े कलाकार थे, जो उस वक्त मंडावा व लखनऊ के राजदरबार में गंधार व ध्रुपद गाते थे। हसन साहब परिवार में पहले गजल गायक थे। जिन्होंने गजल गाने की परंपरा अपने परिवार में शुरू कि थी। इससे पहले वह भी ठुमरी और ध्रुपद गाते थे।