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इंसान आखिर इतना आक्रामक क्यों?

हार्वर्ड के मानव विज्ञानी रिचर्ड का मानना है कि आखिर व्यक्ति कैसे और क्यों अपनों का ही दुश्मन बन जाता है। वे उदाहरण देते हुए समझातें हैं कि कांगों में चिपैंजी और बोनोबोस एक नस्ल के दो जानवर हैं जिनका डीएनए एक दूसरे से काफी मिलता जुलता है।

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मानव आखिर इतना आक्रामक क्यों?

मानव जाति की उत्पत्ति शांति, सद्भाव और प्यार के लिए हुई थी पर हजारों वर्षों से इंसान एक दूसरे का दुश्मन बना हुआ है। रिचर्ड व्रांगहम की किताब द गुडनेस पैराडॉक्स: स्ट्रेंज रिलेशनशिप बिट्वीन वच्र्यु एंड वॉयलेंस इन ह्यूमन इवॉलुशन इसी पर आधारित है जिसमें मानव जाति के रिश्तों पर लिखा है। बीती शताब्दी में लाखों की संख्या में लोग एक दूसरे के हाथों मारे गए, भले ही उसके लिए सिलसिलेवार हत्याएं, युद्ध, परमाणु शक्तियों का इस्तेमाल हुआ हो। उसकी तुलना में आज के समय में हालात बेहतर हैं।

हार्वर्ड के मानव विज्ञानी रिचर्ड का मानना है कि आखिर व्यक्ति कैसे और क्यों अपनों का ही दुश्मन बन जाता है। वे उदाहरण देते हुए समझातें हैं कि कांगों में चिपैंजी और बोनोबोस एक नस्ल के दो जानवर हैं जिनका डीएनए एक दूसरे से काफी मिलता जुलता है। मानव विज्ञान को आधार बनाकर लिखा है कि मनुष्य ने अपनी इच्छाओं को पहले की तुलना में अधिक बड़ा किया जिससे उसके भीतर ईष्र्या का भाव आया है।

इन दोनों जानवरों की प्रकृति इंसानों से मिलती जुलती है। बोनोबॉस शांत प्रिय जंतु है जबकि चिंपैंजी अपने दोस्तों को यहां तक की अपने बच्चों को भी मारने से परहेज नहीं करता है। इसी आधार पर वे कहते हैं कि इंसानों में भी दो तरह की प्रकृति है जिसमें एक शांत तो दूसरा आक्रामक होता है। चिंपैंजी के उग्र होने का कारण उसे गोरिल्लाओं से संसाधनों के लिए युद्ध करना पड़ता है जबकि बोनोबॉस को प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती है और शांत होते हैं। इसी तर्ज पर मनुष्य आगे निकलने और कब्जे की होड़ में वह एक दूसरे का दुश्मन बन बैठा है।

वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत