बूंदी का किला 1426 फीट ऊंचे पर्वत शिखर पर स्थित है। ये पृथ्वी से आकाश के तारे जैसा दिखाई देता है। संभवत: इसीलिए इसे तारागढ़ नाम दिया गया। सबसे खास बात तो ये कि राजस्थान के दूसरे किलों की तरह इस पर मुगल स्थापत्य का कोई खास प्रभाव नहीं दिखाई देता। ये किला ठेठ राजपूती स्थापत्य कला को ध्यान में रखकर बनवाया गया है।
किला पहाड़ी की खड़ी ढलान पर बना है। इमें प्रवेश के लिए तीन विशाल द्वार हैं। इन द्वारों को लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुड़ी का फाटक के नाम से जाना जाता है। महल के द्वार हाथी पोल पर विशालकाय हाथियों की जोड़ी निर्मित है। इस किले के अंदर बने महल अपनी शिल्पकला और भित्ति चित्रों के कारण बेजोड़ नमूने हैं। इन महलों में छत्रमहल, अनिरूद्ध महल, रतन महल, बादल महल और फूल महल आकर्षण के प्रमुख केंद्र हैं।
गर्भ गूंजन
किले में एक बुर्ज है, जिसे भीम बुर्ज कहा जाता है। इस बुर्ज पर एक विशाल तोप रखी है, जो अपनी प्रभावशाली मारकक्षमता से दुश्मनों के छक्के छुड़ा देती थी। इस तोप को “गर्भ गुंजन” के नाम से जाना जाता है। इसके नाम के पीछे की वजह भी बेहद अनोखी है। दरअसल ऐसा कहा जाता है कि जब ये तोप चलती थी, तो इसकी भयंकर गर्जना के साथ उदर तक झंकृत हो जाया करते थे। इसीलिए इसका नाम गर्भ गूंजन पड़ा। ये तोप आज भी यहां रखी है, जो सालहवीं सदी के अपने गौरवशाली इतिहास की कहानी कहती है।
किले में पीने के पानी के तीन तालाब हैं। तालाबों का निर्माण उत्कृष्ट व परिष्कृत इंजीनियरिंग का उदाहरण है। जलाशयों में बारिश का पानी संग्रहित करके रखा जाता था और जरूरत के समय लोगों को उपलब्ध करवाया जाता था। जलाशयों के आधार में चट्टान होने के कारण पानी सालभर यहां एकत्रित रहता था।
84 खंम्भों की छतरी
कोटा जाने वाले मार्ग पर देवपुरा ग्राम के निकट एक विशाल छतरी बनी है। इस छतरी का निर्माण राव राजा अनिरूद्ध सिंह के धाबाई देवा के लिए 1683 में किया। इस तीन मंजिला छतरी में 84 भव्य स्तंभ हैं।