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चंडीगढ़ पंजाब

आखिर कैसी है सुखना झील जिसे बचाने के लिए दो सरकारों पर हुआ है 200 करोड़ का जुर्माना

हरियाली से आच्छादित शिवालिक पहाड़ी की गोद में है प्रसिद्ध लेकरोमांच का अनुभव, प्रकृति की गोद पसंद है तो सुखना झील वरदान

चंडीगढ़ पंजाबMar 04, 2020 / 02:37 pm

Bhanu Pratap

Sukhna lake

Sukhna lake

डॉ. भानु प्रताप सिंह

चंडीगढ़। भारत का पहला सुनियोजित शहर चंडीगढ़। दो राज्यों की राजधानी और केन्द्र शासित प्रदेश। इसी शहर में है सुखना झील। शहर की शान है ये। इसे बचाने के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कड़ा कदम उठाया है। पंजाब और हरियाणा सरकारों पर 100-100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही जल संग्रहण क्षेत्र में हुए निर्माण ढहाने का आदेश दिया है। आइए जानते हैं आखिर सुखना झील में ऐसा क्या है जो हाईकोर्ट को ऐसा आदेश करना पड़ा।
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1958 में हुआ निर्माण, जल संग्रहण क्षेत्र में अवैध निर्माण

सुखना झील हिमालय की शिवालक पहाड़ी की तलहटी में है। इसका निर्माण 1958 में बरसाती झील सुखना खाड़ पर बांध बनाकर किया गया। 1974 में बरसाती पानी का रुख दूसरी ओर मोड़ दिया गया। इसमें साफ पानी भरा जाता है। गंदगी रोकने के लिए 25.42 किलोमीटर जमीन का अधिग्रहण करके जंगल लगाया गया। समय के साथ सुखना झील के आसपास भवन निर्माताओं की गिद्ध दृष्टि पड़ी। झील के जलसंग्रहण क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा सरकार ने निर्माण की अनुमति दे दी। अब यहां बड़ी संख्या में निर्माण हो गए हैं। इन्हीं निर्माणों को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। तीन माह के अंदर जुर्माना राशि जमा करने और निर्माण हटाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही नयागांव मास्टर प्लान 2021 को रद कर दिया है। मनसा देवी अरबन कॉम्पलेक्स अवैध घोषित कर दिया है। सुखना झील को लेकर गौतम खन्ना ने 28 नवम्बर, 2009 को हाईकोर्ट को पत्र लिखा था। इस पर हाईकोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया।
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यह संवाददाता कैसे पहुंचा सुरक्षित

पत्रिका ने तीन मार्च, 2020 को सुखना झील का निरीक्षण किया। सुखना झील इतना रमणीक स्थल है कि यहां आकर मन रम जाता है। सामने हरियाली से आच्छादित शिवालिक पहाड़ी है। इसी की गोद में सुखना झील है। इसमें प्रवासी पक्षी तैरते हुए दिखाई दे जाते हैं। सुखना झील पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। एक तो राजभवन के सामने से नौकायन स्थल पर आ जाते हैं। दूसरा रास्ता रोमांचक पर्यटन का अनुभव कराता है। इसमें ऊंची चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। दो स्थानों पर सीढियां भी बनी हुई हैं। इस संवाददाता ने बिना सीढ़ियां वाली चढ़ाई से जाना पसंद किया। रपटा तो पेड़ की जड़ हाथ में आ गई। इस तरह सुरक्षित पहुंच गया।
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मनोरम दृश्य

सामने अपार जलराशि, हरियाली, पुष्पों की क्यारियां, विचरण करते युवतियां और युवक दिखाई दिए। जहां तक दृष्टि जाती है, वहां तक सिर्फ हरियाली और जल। सुखना झील का जल भी हरियाला है। मतलब जल पूरी तरह साफ नहीं है। इसमें शैवाल बहुत अधिक है। इसी तरह का जल प्रयाग में यमुना का संगम तट पर देखा जा सकता है। सुखना झील पर भ्रमण की उत्तम व्यवस्था की गई है। सड़क है तो पेड़ों की छांव तले भी भ्रमण किया जा सकता है। तशरीफ रखकर भी झील और पहाड़ों को निहार सकते हैं।
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नौकायन का आनंद

सुखना झील में नौकायन का अलग ही आनंद है। नौका में सवार होकर सुखना झील के बीच में पहुंचते हैं तो वहां का दृश्य रोमांचित और अचंभित करने वाला होता है। प्रवासी पक्षी भी निकट आ जाते हैं। सुखना झील में नौकायन करने वाले अपने भाग्य पर इतराते हैं। दो मार्च को सुखना झील में पेयजल की व्यवस्था ‘सूखी’ पड़ी थी। सुखना झील में 150 वर्ष पुराना पीपल का वृक्ष है, जिसके छांव तले लोग बैठते हैं। यहां एक टॉवर है, जिसे कभी सुसाइड टॉवर कहा जाता था। अब यहां सुखना झील म्यूजियम है। इसमें सुखना झील के निर्माण से संबंधित छायाचित्र हैं।
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मछली पकड़ने की अनुज्ञा

सुखना झील में मछली पकड़ने वाले भी सक्रिय देखे जा सकते हैं। एक बार में 20 लोगों को मछली पकड़ने की अनुज्ञा दी जाती है। मंगलवार को मछली पकड़ने वाले दिखाई दिए। कमाल की बात यह है कि एक बार की अनुज्ञा पर सिर्फ दो मछलियां पकड़ी जा सकती हैं। कुल मिलाकर जिन्हें प्रकृति के गोद में उठना-बैठना-शयन करना पसंद है, उनके लिए सुखना झील तो वरदान की तरह है।

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