कोयम्बत्तूर आधारित एजुकेशन डेवलपमेंट कमेटी नामक एनजीओ द्वारा हाल ही में किए गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण से पता चला है कि 25.२ प्रतिशत कॉलेज के छात्र महामारी में अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए अपनी उच्च शिक्षा बंद कर किसी न किसी काम में लग गए। कालेज नहीं लौटे विद्यार्थी तो किया सर्वेगत 1 सितंबर से कॉलेज खुलने के बाद जब अधिकांश छात्र कॉलेज वापस नहीं लौटे तो एनजीओ ने सर्वे शुरू किया और उसमें इसका खुलासा हुआ।
सर्वेक्षण में शामिल हुए 544 छात्रों में से 57.२ प्रतिशत ने कहा कि वे कोविड 19 के डर से कक्षाओं से दूर हैं। इसके अलावा 41.५ प्रतिशत छात्रों ने कहा कि वे पार्ट टाइम नौकरी कर रहे हैं, जबकि 25.२ प्रतिशत विद्यार्थी परिवार का सहयोग करने के लिए दिहाड़ी मजदूरी में लग गए हैं।
-41 प्रतिशत विद्यार्थी कॉलेज नहीं जाना चाहते
सर्वे के अनुसार लगभग 41.७ प्रतिशत विद्यार्थियों ने कहा कि वे कॉलेज नहीं जाना चाहते हैं, क्योंकि वे फीस देने की स्थिति में नहीं है, जबकि 19.३ प्रतिशत विद्यार्थियों ने कहा कि पढ़ाई में उनकी रूचि कम हो गई है। आर्थिक संघर्षछात्र आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं। कोई मोबाइल तो कोई कपड़ने की दुकान में काम कर रहा है। महामारी की वजह से काम करना शुरू करने वाले कुछ विद्यार्थियों को लगता है कि सेमेस्टर परीक्षा लिखना ही काफी होगा। शिक्षाविद् प्रोफेसर के. लेनिन भारती ने कहा कि सरकार को ऐसे विद्यार्थियों का पता लगा कर उन्हें वापस कॉलेज लाना चाहिए।
ऐसा करने के बाद विद्यार्थियों के भविष्य को सुधारा जा सकता है। कॉलेजों के फिर से शुरू होने के बाद से अनुपस्थिति एक बहुत बड़ा मुद्दा बना है। विद्यार्थियों की उपस्थिति बेहद खराब है। उच्च शिक्षा सचिव डी. कार्तिकेयन ने बताया कि एनजीओ सर्वे रिपोर्ट की जांच कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे, ताकि सभी विद्यार्थियों को वापस लाया जा सके।
इनका कहना है
महामारी की वजह से कई परिवार के मुखिया ने नौकरी गंवा दी। इसके परिणामस्वरूप विद्यार्थियों को नौकरी करने के लिए बाहर निकलना पड़ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा ने उन्हें घर से पढ़ाई जारी रखने का विकल्प दिया। इसका उपयोग करते हुए विद्यार्थियों ने बाहर जाकर काम करना शुरू कर दिया। ऐसा करना उनकी मजबूरी हो गई है।-जी. तिरुवसंगम, अध्यक्ष भारतीय विश्वविद्यालय संघ