उन्होंने बताया हम ने यह महसूस किया कि दिल्ली पर पीएम 2.5 का कुल बोझ बीजिंग समेत दुनिया के अन्य प्रदूषित महानगरों की तुलना में बहुत कम है। इसके मद्देनजर दिल्ली के प्रदूषण और इसके वायुमंडल के रसायन विज्ञान को समझना बहुत जटिल रहा है। दिल्ली के आसपास एयरोसोल कणों द्वारा आधा जल ग्रहण करने और दृश्यता में कमी की वजह एचसीएल का स्थानीय उत्सर्जन है जिसकी बड़ी वजह प्लास्टिक युक्त कचरे का जलना और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाएं हैं। शोध ने वैज्ञानिक निष्कर्ष देने के लिए माप और मॉडलिंग के दृष्टिकोण की अहमियत सामने रखी।
एचसीएल विभिन्न स्रोतों से निकल कर अमोनिया से जुड़ता है जिसका इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में उत्सर्जन होता है। इस तरह अमोनियम क्लोराइड (एनएच4सीएल) के सघनित होने से एयरोसोल बनते हैं और एयरोसोल कणों के जल ग्रहण करने की क्षमता बहुत बढ़ती है। इनका आकार बढ़ने के परिणामस्वरूप अंततः घना कोहरे बनता है। अत्यधिक क्लोराइड नहीं हो तो कोहरा बनना काफी कम हो जाएगा।
वायु प्रदूषण, ई-कचरा सहित ठोस कचरा प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा की नीतियों में सुधार
डॉ. सचिन गुंथे ने कहा, हम प्लास्टिक के जलने को दृश्यता में कमी की बड़ी वजह मानते हैं। हमें उम्मीद है कि हमारे शोध के ऐसे निष्कर्षों से नीति निर्माताओं को उन नीतियों को अधिक सक्षमता से लागू करने और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी जो प्लास्टिक और क्लोरीन के अन्य स्रोतों को खुले में जलने से रोकने के लिए पहले से मौजूद हैं। अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत में पर्यावरण की समस्याओं के नियोजित समाधान के लिए वायु प्रदूषण, ई-कचरा सहित ठोस कचरा प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा की नीतियों में सुधार करने होंगे।