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चेन्नई

दिल्ली में दृश्यता की कमी की वजह क्लोराइड कणों की अधिकता

– आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन- हवा की गुणवत्ता और दृश्यता में सुधार की बेहतर नीतियां बनाने में मदद-कोहरे से आर्थिक नुकसान एवं जन जीवन अस्त व्यस्त

चेन्नईJan 27, 2021 / 07:41 pm

Santosh Tiwari

दिल्ली में दृश्यता की कमी की वजह क्लोराइड कणों की अधिकता

दिल्ली में दृश्यता की कमी की वजह क्लोराइड कणों की अधिकता

चेन्नई.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया है कि खास कर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में कोहरे और धुंध की वजह पार्टिकुलेट मैटर में सबसे अधिक अकार्बनिक अंश क्लोराइड का होना है। यह अध्ययन एक प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू इंटरनेशनल जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित किया गया है।
पिछले कई अध्ययनों ने पीएम2.5 (2.5 माइक्रो मीटर से कम व्यास वाले पार्टिकुलेट मैटर या एयरोसोल) को प्रमुख प्रदूषक माना गया है जिसकी वजह दिल्ली समेत पूरे भारतीय-गंगा मैदानी क्षेत्र में कोहरा और धुंध बनता है। हालांकि पीएम 2.5 की भूमिका और राष्ट्रीय राजधानी में धुंध और कोहरा छाने के विस्तृत रासायनिक विवरण को समझने में कमी रह गई थी और यह कमी हवा की गुणवत्ता और दृश्यता में सुधार की कारगर नीतियां बनाने में सबसे बड़ी बाधा थी। नए अध्ययन से कोहरा बनने की रासायनिक प्रक्रिया में पीएम2.5 की सटीक भूमिका के बारे में समझ बहुत बढ़ी है जिससे नीति निर्माताओं को राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता और दृश्यता में सुधार की बेहतर नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
ये होता है नुकसान
घने कोहरे की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में हवाई यात्रा और सड़क परिवहन बुरी तरह प्रभावित होता है। परिणामतः भारी आर्थिक क्षति होती है और जन जीवन खतरे में रहता है। घने कोहरे के दौरान जन जीवन ठहर जाता है।
धुंध व कोहरा बनने की मुख्य वजह एचसीएल की रासायनिक प्रतिक्रियाएं
यह अध्ययन न केवल इसकी वैज्ञानिक व्याख्या करता है कि दिल्ली के अंदर पीएम2.5 की मात्रा में उच्च क्लोराइड का स्रोत क्या है बल्कि इसकी भी कि धुंध और कोहरा बनने और दृश्यता में कमी में इसकी कितनी भूमिका है। अध्ययन बताता है कि उच्च पीएम 2.5 और परिणामतः जाड़े की ठंड रातों में दिल्ली में धुंध और कोहरा बनने की मुख्य वजह हाइड्रोक्लोरिक एसिड (एचसीएल) की रासायनिक प्रतिक्रियाएं हैं। यह एसीड प्लास्टिक युक्त कचरा जलने और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं से सीधे वातावरण में उत्सर्जित होता है। हालांकि इससे पूर्व भी शोधकर्ताओं ने पीएम2.5 में क्लोराइड की अधिक मात्रा का अवलोकन किया पर क्लोराइड की अधिकता के संभावित स्रोत क्या हैं और क्या यह धुंध और कोहरा बनने के लिए जिम्मेदार है यह वैज्ञानिक रहस्य बना था।
अध्ययन का नेतृत्व आईआईटी मद्रास ने किया है और इसमें मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर कैमिस्ट्री, जर्मनी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए, जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, यूएसए और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी, यूके का सहयोग रहा है।
अध्ययन का संपूर्ण नेतृत्व करने वाले डा. सचिन एस. गुंथे, एसोसिएट प्रोफेसर, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी मद्रास और उनकी टीम ने खुद से एक बहुत ही बुनियादी सवाल पूछा कि यदि दिल्ली पर पीएम2.5 का कुल बोझ प्रदूषित मेगासिटी बीजिंग की तुलना में बहुत कम है तो दिल्ली में दृश्यता में कमी की इतनी बड़ी समस्या क्यों है?
उन्होंने बताया हम ने यह महसूस किया कि दिल्ली पर पीएम 2.5 का कुल बोझ बीजिंग समेत दुनिया के अन्य प्रदूषित महानगरों की तुलना में बहुत कम है। इसके मद्देनजर दिल्ली के प्रदूषण और इसके वायुमंडल के रसायन विज्ञान को समझना बहुत जटिल रहा है। दिल्ली के आसपास एयरोसोल कणों द्वारा आधा जल ग्रहण करने और दृश्यता में कमी की वजह एचसीएल का स्थानीय उत्सर्जन है जिसकी बड़ी वजह प्लास्टिक युक्त कचरे का जलना और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाएं हैं। शोध ने वैज्ञानिक निष्कर्ष देने के लिए माप और मॉडलिंग के दृष्टिकोण की अहमियत सामने रखी।
एचसीएल विभिन्न स्रोतों से निकल कर अमोनिया से जुड़ता है जिसका इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में उत्सर्जन होता है। इस तरह अमोनियम क्लोराइड (एनएच4सीएल) के सघनित होने से एयरोसोल बनते हैं और एयरोसोल कणों के जल ग्रहण करने की क्षमता बहुत बढ़ती है। इनका आकार बढ़ने के परिणामस्वरूप अंततः घना कोहरे बनता है। अत्यधिक क्लोराइड नहीं हो तो कोहरा बनना काफी कम हो जाएगा।
डॉ. सचिन गुंथे ने बताया, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अभी हमारा आधा काम हुआ है। प्लास्टिक युक्त कचरा जलने से अत्यधिक विषैले रसायन डाइऑक्सिन का उत्सर्जन हो सकता है जो हमारी खाद्य शृंखला में प्रवेश कर प्रजनन और प्रतिरक्षा (इम्यून) क्षमता को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। प्रदूषण से निपटने के लिए वायु प्रदूषण के मौलिक विज्ञान को प्रौद्योगिकी विकास की तरह बढ़ावा देना होगा।
वायु प्रदूषण, ई-कचरा सहित ठोस कचरा प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा की नीतियों में सुधार
डॉ. सचिन गुंथे ने कहा, हम प्लास्टिक के जलने को दृश्यता में कमी की बड़ी वजह मानते हैं। हमें उम्मीद है कि हमारे शोध के ऐसे निष्कर्षों से नीति निर्माताओं को उन नीतियों को अधिक सक्षमता से लागू करने और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी जो प्लास्टिक और क्लोरीन के अन्य स्रोतों को खुले में जलने से रोकने के लिए पहले से मौजूद हैं। अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत में पर्यावरण की समस्याओं के नियोजित समाधान के लिए वायु प्रदूषण, ई-कचरा सहित ठोस कचरा प्रबंधन और खाद्य सुरक्षा की नीतियों में सुधार करने होंगे।

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