राज्यों के उपायों को केंद्र सरकार से भी बल मिला है। हाल में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएनएसटीएस) के लिये हरित ऊर्जा कॉरिडोर (जीईसी) चरण-द्वितीय की योजना को मंजूरी दे दी। इसके तहत लगभग 10,750 सर्किट किलोमीटर पारेषण लाइन तथा सब-स्टेशनों की लगभग 27,500 मेगा वोल्ट-एम्पियर (एमवीए) ट्रांसफार्मर क्षमता को अतिरिक्त रूप से जोड़ा जाएगा।
इन 7 राज्यों को फायदा
इस योजना से सात राज्यों- गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश में ग्रिड एकीकरण और लगभग 20 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा की बिजली निकासी परियोजनाओं को मदद मिलेगी। परियोजना की अनुमानित लागत 12,031.33 करोड़ रुपए है और अवधि पांच वर्ष तय की गई है। इस योजना से 2030 तक 450 गीगावॉट स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
५० प्रतिशत तक कम होगी कोयले पर निर्भरता
नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि अगले दशक में कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन कायम रहेगा। बहरहाल, कुल ऊर्जा उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी मौजूदा ७२ से ५० प्रतिशत तक कम हो जाएगी। इस बदलाव का श्रेय ऊर्जा उत्पादन की विविधता और खासकर नवकरणीय ऊर्जा को जाएगा।
ऊर्जा संबंधी फैक्ट फाइल
– देश की ७० फीसदी ऊर्जा मांग की आपूर्ति कोयले और तेल से
– ताप बिजलीघरों से होने वाला उत्पादन कुल ऊर्जा उत्पादन का ७८ प्रतिशत
– नवकरणीय ऊर्जा का अनुपात २२ प्रतिशत
– २०५० तक कोयले और तेल के उपभोग में ६० प्रतिशत कमी की संभावना
देश में ऊर्जा उत्पादन
कुल ३ लाख ८३ हजार ३७३ मेगावाट
कुल नवकरणीय ऊर्जा ९५६५६ मेगावाट
तमिलनाडु में अक्षय ऊर्जा १५२५० मेगावाट
(स्रोत : तमिलनाडु ऊर्जा एजेंसी, ३१ मई २०२१)
केंद्र को भेजे गए प्रोजेक्ट फाइल
तमिलनाडु में हरित ऊर्जा कॉरिडोर (जीईसी) चरण-द्वितीय के लिए केंद्र सरकार को प्रोजेक्ट फाइल भेजी गई है। स्वीकृति के बाद उन पर कार्य शुरू होगा।
रमेश चंद मीणा, प्रधान सचिव ऊर्जा विभाग, तमिलनाडु सरकार।