जोशी ने कहा कि ऐसा ही प्रेम भगवान श्री कृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा ने किया तो श्री कृष्ण ने द्वारकाधीश बनने पर भी प्रेम निभाया। ऐसा ही प्रेम मीराबाई, कर्मा बाई, कबीर , दादू, भक्त प्रह्लाद, ध्रुव ने परमात्मा से किया और सभी भक्तों का उद्धार भगवान ने किया।
हरियाणा से आए महन्त ताजाराम महाराज ने बताया कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए भजन, सुमिरन, सत्संग, परोपकार और पतित की सेवा ही साधन है। इसलिए निरन्तर सत्कर्म करते रहें। मनुष्य योनि में जन्म लेना तभी सफल होगा।
सफलता का प्रथम सोपान है विफलता
मईलापुर जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि सफलता प्राप्त करने के लिए लक्ष्य के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति और संकल्प रहना चाहिए। संकल्प से आत्म विश्वास उत्पन्न होता है और आत्मविश्वास के साथ पुरुषार्थ करने पर मंजिल प्राप्त होती है। आत्मविश्वास जीवन पथ में मशाल की तरह है जो गिरते हुए व्यक्ति को भी पथ प्रदर्शन कराते हुए नई शक्ति प्रदान करता है।
मूल्यवान लक्ष्य की लगातार प्राप्ति का नाम ही सफलता है। यदि सफल व्यक्तियों के गुणों को पहचान कर उन्हें अपना लिया जाता है, तो वह भी सफल हो सकता है। यदि शुरूआती दौड़ में लक्ष्य की प्राप्ति ना हो पा रही हो तो भी आशावादी रहें, एक न एक दिन सफलता मिल ही जाती है।
उन्होंने कहा आशा से अधिक जीवन में कोई और सहायक नहीं हो सकता। सफल व्यक्तियों के लिए हर समस्या, समाधान ढूंढने का एक मौका है। विफलता ही सफलता का प्रथम सोपान है। विफल होने पर, इससे सबक लेते हुए व्यक्ति को अधिक परिश्रम करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। जिस प्रकार फल को पकने से पहले ही तोड़ लिया जाए तो किसी को लाभ नहीं होता, ठीक उसी तरह सफलता मिलने से पहले ही प्रयास छोड़ दिया जाए तो, वह उचित नहीं कहा जा सकता है। धैर्य वृक्ष पर ही फूल खिलते हैं और समय आने पर फल की प्राप्ति होती है।
उन्होंने कहा क्रिया के बिना विचार मृत है। मात्र सोचने रहने से कार्य पूरा नहीं हो सकता है। अक्सर व्यक्ति विफलता का दोष, अपने भाग्य में देने लगता है। उसका कारण शक्ति का गलत दिशा में उपयोग और धैर्य का अभाव होता है। सफल व्यक्ति कुछ नया कार्य नहीं करते, वे हर कार्य को नए तरीके से करते हैं। लगातार चोट करने पर बड़ी सी शिला भी टूट जाती है। दुविधा और सही निर्णय लेने में असक्षम होना योग्य पुरुष को भी अयोग्य बना देती है। संघ मंत्री विमल खाबिया ने कार्यक्रम का संचालन किया।