रेवालाल अहिरवार ने 1989 के पहला चुनाव विद्युत सहकारी समिति के डारेक्टर के लिए लड़ा और उस दौर के कई दिग्गज भी चुनावी मैदान में थे। उस समय चुनाव लडऩे के लिए पत्नी ने 100 रुपए दिए 60 रुपए की पम्लेट लगवाई और 20 रुपए की बीड़ी लोगों को पिलाई और बाकी बचे 20 रुपए पत्नी को वापस कर दिए। जब चुनाव की घोषणा हुई तो विद्युत सहकारी समिति का डारेक्टर चुन लिया गया। उन्होंने लवकुशनगर नगरपरिषद के लिए दो बार निर्दलीय चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस और बीजेपी जैसी दिग्गज पार्टियों के लोग विपक्ष में थे। पहला चुनाव 1999 में लड़ा था, जिसमें 10 हजार रुपए खर्च करते हुए चुनाव जीता था और फिर उसके बाद 2009 के एक फिर नगरपरिषद का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इस बार चुनाव प्रचार में कुल 70 हजार खर्च हुए थे।
जेब में रखते थे सील, मजदूरी करते हुए निपटाते थे फाइल
रेवालाल अहिरवार के काम करने का तारीख भी अनूठा रहा है। जब वे नगरपरिषद अध्यक्ष थे, उस समय भी पल्लेदारी करते थे और नगर अध्यक्ष की सील जेब में रखते थे। पल्लेदारी करते समय जब भी कोई फाइल साइन करने के लिए आती, तो वह वहीं पर साइन कर अपनी पल्लेदारी के काम में लग जाते थे। रेवालाल का कहना कि गलत तरीके से पैसे कमाने का मौका कई बार आया, लेकिन मैंने कभी इस तरह से पैसे कमाने की चाह नहीं रखी। परिवार का भरण पोषण पिछले 40 वर्षो से पल्लेदारी के पैसों से कर रहे हैं। परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे और 2 बेटियां है, सभी बच्चों की शादी हो चुकी है। चुनाव की हलचल शुरु होते ही रेवालाल एक बार फिर चुनाव लडऩे का मन बना रहे है।