स्टॉफ की भी कमी बन रही परेशानी
शासकीय कॉलेजों में विद्यार्थियों की संख्या के हिसाब से प्राध्यापकों की भी नियुक्ति नहीं है। जिले के कई शासकीय कॉलेज अतिथि विद्वान एवं जनभागीदारी शिक्षक के भरोसे ही चल रहे हैं। जबकि
कॉलेजों में हर साल छात्रों की संख्या बढ़ रही है। जानकारों का कहना है कि स्थायी प्राचार्य के बिना कॉलेजों का विकास संभव नहीं है। यदि शासन बेहतर रिजल्ट चाहता है तो खाली पदों को भरना जरूरी है।
किसी भी शासकीय कॉलेज में स्थायी प्राचार्य न होने से नैक ग्रेडिंग पर प्रभाव पड़ता है। नैक टीम निरीक्षक के समय इस पर सवाल उठाती है। इसे माइनस प्वाइंट के तौर पर गिना जाता है। इसके अलावा समान कैडर के होने की वजह से अन्य प्रोफेसर प्रभारी प्राचार्य की बातों को अनसुना कर देते हैं। प्रभारी प्राचार्य को प्राध्यापकों का सीआर लिखने का अधिकार नहीं होता और न ही कोई निर्णय लेने का अधिकार होता है। इसके अलावा कॉलेजों मे स्थाई प्राचार्य को त्वरित कार्यवाही करने की छूट रहती है। जबकि प्रभारी प्राचार्य को इसके लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वहीं कॉलेज में खर्च को लेकर भी प्रभारी प्राचार्य को सीमित सुविधा दी गई है। अधिक खर्च के लिए शासन की अनुमति लेनी पड़ती है। जिसमें अधिक समय लगता है।
ये कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे
– शासकीय स्वशासी पीजी कॉलेज, छिंदवाड़ा
– राजमाता सिंधिया गल्र्स कॉलेज, छिंदवाड़ा
– शासकीय कॉलेज, जुन्नारदेव
– शासकीय कॉलेज, सौंसर
– शासकीय कॉलेज, लोधीखेड़ा
– शासकीय कॉलेज, पांढुर्ना
– शासकीय कॉलेज, बिछुआ
– शासकीय कॉलेज, दमुआ
– शासकीय कॉलेज, हर्रई
– शासकीय लॉ कॉलेज, छिंदवाड़ा
– शासकीय कॉलेज, चांद
– शासकीय कॉलेज, उमरानाला
– शासकीय कॉलेज, चौरई
– शासकीय कॉलेज, तामिया
– शासकीय कॉलेज, परासिया