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छिंदवाड़ा

College: प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे जिले के 16 में से 15 शासकीय कॉलेज

उच्च शिक्षा विभाग नहीं दे रहा ध्यान, कॉलेजों में अध्ययन हो रहा प्रभावित

छिंदवाड़ाJan 20, 2024 / 12:36 pm

ashish mishra

College news: पीजी कॉलेज में पटरी पर नहीं लौटी अध्यापन व्यवस्था

College news: पीजी कॉलेज में पटरी पर नहीं लौटी अध्यापन व्यवस्था

छिंदवाड़ा. जिले के अधिकतर शासकीय कॉलेजों में अध्ययन व्यवस्था लडखड़़ाई हुई है। दरअसल इन कॉलेजों की कमान प्रभारी प्राचार्यों के हाथों में है। ऐसे में कॉलेज में पदस्थ प्राध्यापक भी इनकी नहीं सुन रहे हैं। आलम यह है कि प्राध्यापक बायोमैट्रिक अटेंडेंस लगाने के बाद कॉलेज से नदारद हो जा रहे हैं और फिर शाम को वापस कॉलेज पहुंच रहे हैं। दूसरी तरफ शासन लगातार उच्च शिक्षा में सुधार के लिए भले ही नियमित अंतराल पर सर्कुलर जारी कर निर्देश दिए जा रहे हैं, लेकिन छात्रों की शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए यह काफी नहीं है। बड़ी बात यह है कि जिले में 16 शासकीय कॉलेज संचालित हैं। इनमें से मात्र एक शासकीय कॉलेज अमरवाड़ा में ही डॉ. शिवचरण मेश्राम स्थाई प्राचार्य के रूप में पदस्थ हैं। शेष 15 कॉलेज प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रहे हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन कॉलेजों में शैक्षणिक गतिविधियां सहित अन्य कार्य किस तरह से चल रहे होंगे। कॉलेजों में शैक्षणिक सत्र आरंभ हुए चार माह से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन अधिकतर संकाय में अध्यापन व्यवस्था पटरी पर नहीं लौटी है। छिंदवाड़ा जिले में लीड कॉलेज की जिम्मेदारी भी प्रभारी प्राचार्य के कंधों पर है। जिले में शासकीय कॉलेज अमरवाड़ा में ही नियमित प्राचार्य पदस्थ हैं। उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो विभाग में सीनियर प्राध्यापकों के सेवानिवृत्ति के बाद अथवा पद खाली होने की स्थिति में उन पदों को प्रमोशन के जरिए नहीं भरा जा रहा है। पिछले करीब एक दशक से कॉलेजों में वरिष्ठता के आधार पर शिक्षकों को प्रमोट नहीं किया गया है। यही कारण है कि शासकीय कॉलेजों में प्राचार्य के पद खाली पड़े हुए हैं।

स्टॉफ की भी कमी बन रही परेशानी
शासकीय कॉलेजों में विद्यार्थियों की संख्या के हिसाब से प्राध्यापकों की भी नियुक्ति नहीं है। जिले के कई शासकीय कॉलेज अतिथि विद्वान एवं जनभागीदारी शिक्षक के भरोसे ही चल रहे हैं। जबकि
कॉलेजों में हर साल छात्रों की संख्या बढ़ रही है। जानकारों का कहना है कि स्थायी प्राचार्य के बिना कॉलेजों का विकास संभव नहीं है। यदि शासन बेहतर रिजल्ट चाहता है तो खाली पदों को भरना जरूरी है।
स्थायी प्राचार्य न होने से नुकसान
किसी भी शासकीय कॉलेज में स्थायी प्राचार्य न होने से नैक ग्रेडिंग पर प्रभाव पड़ता है। नैक टीम निरीक्षक के समय इस पर सवाल उठाती है। इसे माइनस प्वाइंट के तौर पर गिना जाता है। इसके अलावा समान कैडर के होने की वजह से अन्य प्रोफेसर प्रभारी प्राचार्य की बातों को अनसुना कर देते हैं। प्रभारी प्राचार्य को प्राध्यापकों का सीआर लिखने का अधिकार नहीं होता और न ही कोई निर्णय लेने का अधिकार होता है। इसके अलावा कॉलेजों मे स्थाई प्राचार्य को त्वरित कार्यवाही करने की छूट रहती है। जबकि प्रभारी प्राचार्य को इसके लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वहीं कॉलेज में खर्च को लेकर भी प्रभारी प्राचार्य को सीमित सुविधा दी गई है। अधिक खर्च के लिए शासन की अनुमति लेनी पड़ती है। जिसमें अधिक समय लगता है।

ये कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे
– शासकीय स्वशासी पीजी कॉलेज, छिंदवाड़ा
– राजमाता सिंधिया गल्र्स कॉलेज, छिंदवाड़ा
– शासकीय कॉलेज, जुन्नारदेव
– शासकीय कॉलेज, सौंसर
– शासकीय कॉलेज, लोधीखेड़ा
– शासकीय कॉलेज, पांढुर्ना
– शासकीय कॉलेज, बिछुआ
– शासकीय कॉलेज, दमुआ
– शासकीय कॉलेज, हर्रई
– शासकीय लॉ कॉलेज, छिंदवाड़ा
– शासकीय कॉलेज, चांद
– शासकीय कॉलेज, उमरानाला
– शासकीय कॉलेज, चौरई
– शासकीय कॉलेज, तामिया
– शासकीय कॉलेज, परासिया

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