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चित्रकूट

यादों के झरोखों में : राम की तपोभूमि व नानाजी देशमुख से सुषमा स्वराज का था गहरा लगाव

भारतीय राजनीति में अपनी सशक्त पहचान बनाने वाली सुषमा स्वराज का राम की तपोभूमि से गहरा लगाव था।

चित्रकूटAug 07, 2019 / 03:54 pm

Neeraj Patel

Sushma Swaraj deep affection from Ram tapobhoomi and Nanaji Deshmukh

यादों के झरोखों में : राम की तपोभूमि व नानाजी देशमुख से सुषमा स्वराज का था गहरा लगाव

चित्रकूट. भारतीय राजनीति में अपनी सशक्त पहचान बनाने वाली सुषमा स्वराज का राम की तपोभूमि से गहरा लगाव था। अपने सम्पूर्ण जीवन को राष्ट्र व समाज के लिए समर्पित कर देने वाले प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख के कार्यों से वे खासी प्रभावित थीं। नानाजी के प्रकल्पों को देख कर उन्होंने कहा था कि हिंदुस्तान के हर राजनेता समाजसेवी को चित्रकूट जरूर आना चाहिए और नानाजी के कार्यों का अवलोकन करना चाहिए। सन 2001 में प. दीनदयाल उपाध्याय के बलिदान दिवस पर हुए एक कार्यक्रम में सुषमा स्वराज शामिल होने आई थीं।

जब अचंभित हो गई थीं सुषमा स्वराज

11 फरवरी सन 2001 को प. दीनदयाल उपाध्याय के बलिदान दिवस पर आयोजित जन सहभागिता सम्मेलन में शामिल होने आई सुषमा स्वराज उस समय अचंभित रह गईं, जब उन्होंने बीहड़ों जंगलों के बीच स्थित दीनदयाल शोध संस्थान के प्रकल्पों को देखा। सम्मेलन को संबोधित करते हुए सुषमा स्वराज ने अपने शब्दों में कहा था कि” नाना जी के कार्य सामाजिक जीवन के लिए अनुकरणीय हैं। राजनीतिक गहमागहमी के बीच थोड़ा समय भी इस तरह के रचनात्मक कार्यों को देखने को मिल जाये तो इससे एक नई ऊर्जा, एक नई स्फूर्ति, एक नई ताजगी मिलती है। आज मैं आनंदित एवम अभिभूत हूं क्योंकि मैं किताबों में पढ़ती थी कि किसी ने अपने परिश्रम से जंगल मे मंगल कर दिया लेकिन आज यहां देखने के बाद पूरी दृढ़ता के साथ कह सकती हूं कि नाना जी के परिश्रम ने यहां जंगल में मंगल कर दिया नाना जब यहां आये थे तो ऊबड़-खाबड़ पहाड़ थे।

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जन सहभागिता से ही परिवर्तन सम्भव

सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि प. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन सिद्धांत को मूर्तरूप चित्रकूट में नाना जी देशमुख ने दिया है। वह चाहती हैं कि हिंदुस्तान के हर राजनेता एवम राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति को एक बार यहां आना चाहिए और स्वयं देखना चाहिए व अपने अपने संसदीय एवम विधानसभा क्षेत्र में तथा अपने अपने उस क्षेत्र में जहां वह कार्य कर रहे हैं वहां इसका अनुसरण करना चाहिए। जनसहभागिता से ही देश व समाज में सकारात्मक परिवर्तन सम्भव हो सकता है।

सुषमा स्वराज के निधन की खबर ने धर्मनगरी में शोक की लहर दौड़ा दी है। खासकर दीनदयाल शोध संस्थान जहां से उनकी सुखद यादें जुडी हैं वहां एक बार फिर सुषमा स्वराज के वक्तव्य उनकी भाषण शैली जीवंत हो उठी है।

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