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चित्तौड़गढ़

“मैं हूं चित्तौड़गढ़…जो वीरता एवं स्वाभिमान के लिए जाना जाता हूं”, चित्तौड़गढ़ स्थापना दिवस आज

Chittorgarh Foundation Day : चित्तौड़गढ़ की स्थापना वैशाख के शुक्ल पक्ष की आठम को हुई थी। तभी से इसे चित्तौड़ी आठम के नाम से जाना जाता है।

चित्तौड़गढ़May 16, 2024 / 11:08 am

Supriya Rani

चित्तौड़गढ़. चित्तौड़गढ़ की स्थापना वैशाख के शुक्ल पक्ष की आठम को हुई थी। तभी से इसे चित्तौड़ी आठम के नाम से जाना जाता है। जिस तरह चित्तौडग़ढ़ अपने गर्भ में विरासत की एक स्वर्णिम आभा को लिए हुए बैठा है, वर्तमान में भी चित्तौड़ शिक्षा स्वास्थ्य पर्यटन आदि क्षेत्रों में दिनों दिन प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है। एशिया में सबसे अधिक सीमेंट प्लांट चित्तौडग़ढ़ क्षेत्र में लगे हुए हैं साथ ही गोल्डन ट्रायंगल एशिया का सबसे बड़ा व्यू प्वाइंट है। शिक्षा के क्षेत्र में चित्तौडग़ढ़ निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। गंगरार स्थित मेवाड़ विश्वविद्यालय कि 2008 में शुरुआत के साथ शिक्षा के स्तर में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है। दूर दराज के क्षेत्र एवं विदेश से भी विद्यार्थी यहां चित्तौड़ में अध्ययन के लिए पहुंचते हैं।

चित्तौडग़ढ़ शिक्षा के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है वहीं पर्यटन के क्षेत्र में चित्तौडग़ढ़ में असीम संभावनाएं व्याप्त है। दुर्ग पर फिल्मों की शूटिंग हुई है इससे भी चित्तौड़ के पर्यटन में बढ़ोतरी हुई है, यह सब चित्तौड़ को नई पहचान मिली है। वहीं अब मेडिकल कॉलेज की शुरूआत से चिकित्सा क्षेत्र में नए आयाम स्थापित हो रहे हैं।

कला में भी हम विशेष

वहीं, बस्सी की काष्ठ कला एवं अकोला की रंगाई छपाई चित्तौड़गढ़ की विरासत है। यहां की कलाकारों ने चित्तौडग़ढ़ को विश्व में नई याति दिलाई है।

यह है अपना चित्तौड़गढ़

चित्तौड़गढ़ का नाम आते ही जेहन में महाराणा प्रताप की वीरता एवं मीराबाई की भक्ति याद आ जाती है। पद्मिनी का जौहर स्वाभिमान और मान समान का प्रतीक है, इतिहास के आइने में चित्तौडग़ढ़ स्वर्णिम आभा लिए हुए खड़ा है। अपने पराक्रम साहस वीरता की कहानी कहता चित्तौडग़ढ़ अदय शौर्य शक्ति का प्रतीक है।

शक्तिपीठों व सांवरा की महिमा निरालीसबसे अधिक धार्मिक शक्तिपीठ चित्तौड़गढ़ जिले में जिनमें प्रमुख रूप से जोगणियां माता, दुर्ग पर कालिका माता, आसावरा माता, चंदा माता, सगरा माता, लाल बाई फुल बाई माता, एलवा माता, टुकड़ा माता आदि प्रमुख रूप से है, वही चित्तौड़गढ़ के प्रमुख धाम सांवलिया सेठ की महिमा अपरपार है देश ही नहीं अपितु विदेश तक सांवरा की याति है। आली में शनि मंदिर की एक अलग ही पहचान है। वही कपासन स्थित हजरत दीवाना शाह दरगाह पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है।

गजब की थी यहां की कारीगरी

मेवाड़ के मुय केन्द्र चित्तौड़ का इतिहास आज भी आन-बान-शान की कहानी कहता है। चित्तौड़ी आठम को चित्तौड़ का स्थापना दिवस माना जाता है। चित्तौडगढ़ ने एकीकृत राजस्थान के 67 वर्ष के इतिहास में भी सफलता व विकास के नए पथ पर चलते हुए राजस्थान के चित्र पटल पर खास पहचान बनाई है। भक्ति व शक्ति की धरा चित्तौड़ दुर्ग यूनेस्को की विश्व विरासत में शुमार होकर दुनिया में देश और प्रदेश का गौरव बढ़ा रहा है। पर्यटक सीजन में हर शुक्रवार को शाही ट्रेन पैलेस ऑन व्हील्स के माध्यम से देशी-विदेशी पर्यटक यहां आते हैं।

चित्तौड़ी टांकी यानी यहां की कारीगरी ऐसी थी कि दिन-रात निर्माण कार्य चलता रहता था। ऐसे में यहां रोजगार मिल जाता था। यहां के शिल्पियों की देश में पहचान थी। गुजरात के शत्रुंजय पर्वत पर जैन मंदिर निर्माण और जीर्णोद्धार में चित्तौड़ के सूत्रधार और शिल्पियों का सहयोग रहा। मालवा, मारवाड़, गोड़वाड़ आदि में भी यहां के शिल्पियों के बनाए महल, बाग-बगीचे, बावडिय़ां व मंदिर अलग पहचान रखते हैं। महाराणा कुंभा के समय में चित्तौड़ में निर्माण संबंधी जो नियम बने, वे देश भर में मान्य हुए। कर्नाटक और तेलंगाना तक के सूत्रकारों ने भी इन नियमों और निर्देशों को स्वीकार किया था।

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