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कोयंबटूर

औषधीय प्रजाति के 328 पौधों से बढ़ी सिंगनाल्लूर की शान

शहर की प्रमुख झील सिंगनाल्लूर मात्रा पानी का स्रोत नहीं है। यह शहर के बीच जैव विविधता का भंडार है। इसके संरक्षण की महती जरूरत है।

कोयंबटूरMay 19, 2019 / 12:38 pm

कुमार जीवेन्द्र झा

medicinal plants

औषधीय प्रजाति के 328 पौधों से बढ़ी सिंगनाल्लूर की शान

कोयम्बत्तूर. शहर की प्रमुख झील सिंगनाल्लूर मात्रा पानी का स्रोत नहीं है। यह शहर के बीच जैव विविधता का भंडार है। इसके संरक्षण की महती जरूरत है। इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट जेनेटिक्स एंड ट्री ब्रीडिंग (आईएफजीटीबी) की एक टीम ने जैव विज्ञानी कुन्हणिकानन के नेतृत्व में साल भर हर मौसम में झील का सर्वे किया। टीम ने जो पाया उससे वे हतप्रभ हैं।सर्वे की रिपोर्ट तैयार की गईहै। साथ ही यहां मिली पेड़ -पौधों की विभिन्न प्रजातियों के फूल-पत्ते आदि संरक्षित किए गए हैं।रिपोर्ट में बताया गया है कि यह शहर के पास नम भूमि (वैट लैण्ड) है। यहीं इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जैव विज्ञानी कुन्हणिकानन के अनुसार उन्हें अपने 30 वर्षों के अनुभव में यहां ऐसी वनस्पति मिली हैं। जो इससे पहवे उन्होंने कभी नहीं देखी। यह रिपोर्ट भविष्य के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।झील के आसपास ३२८ प्रजातियों के पौधे तो है जिनमें औषधीय गुण है। बाद के सालों में यहां से कोई प्रजाति खत्म होती है तो हम आसानी से इस रिपोर्टका उल्लेख कर सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि कौन सा पौधा गायब है और क्यों।
हालांकि इस अध्ययन में एक खतरनाक खुलासा भी हुआ है। झील होने के बाद भी यहां एक भी जलीय पौधा नहीं पाया जा सका है। इसका सीधी कारण झील का पानी अत्यंत प्रदूषित होना है। अब प्रशासन को तय करना है कि वह इस झील का कैसे रखरखाव किया जाना है। यदि इसी तरह से पानी में प्रदूषण की मात्रा बढती रही तो झील के किनारे की जैव विविधता को भी खतरा हो सकता है।
सेंटर फॉर अर्बन बायोडायवर्सिटी कंज़र्वेशन एंड एजुकेशन के सदस्य वी .सतीश के अनुसार नगर निगम को अब झील को संरक्षित करने की दिशा में गंभीरता से कोशिश करना होगा।उन्होंने कहा कि झील जब बुरी दशा में हैं तब यहां इतनी जैव विविधता है तो फिर यदि पूरी योजना से काम किया जाए तो परिणाम सुखद होंगे। हालांकि झील को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। पर योजना में झील पर पार्क व सौन्दर्य पर ज्यादा जोर है। जबकि जरूरत झील में गंदे पानी को रोकने की है। साथ ही इसके जलग्रहण क्षेत्र को संरक्षित किया जाना चाहिए। यहां तितलियों का अध्ययन कर रहे एन.आनंद के अनुसार झील के किनारे वे तितलियों की 92 प्रजातियों को देख चुके हैं।इनमें दुर्लभ ब्लैक स्पॉट पियरोट भी शामिल है,जो पश्चिमी घाट के जंगलों में देखने को मिलती है। झील के संरक्षण के बारे में उन्होंने बताया कि समय-समय पर युवा यहां आते हैं।
जो झील के किनारों की सफाई करते हैं। दूसरी ओर ऐसे लोगों की संख्य ा भी कम नहीं जो यहां प्लास्टिक कचरा फैलाते हैं।उन्होंने बताया कि यह सिंगनाल्लूर झील ही है। जिसकी वजह से आसपास के इलाके में भूमिगत जलस्तर बहुत अच्छा है।

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