उस पर माओवादियों को शक है कि तमाम गिरफ्तारियां , समर्पण और मुठभेड़ में बड़ी सहभागित निभाई है। इसलिए हितावर में भीमा कुंजाम को विशेष आग्रह पर बुलाया गया था। उसको नहीं मालूम था कि उसकी मौत के लिए षडयंत्र रचा चुका है। बुधराम सहित चार माओवादी हितावर में ही मासे नाम की महिला के घर में रुके हुए थे। इस महिला को भी नहीं मालूम था कि ये लोग भीमा को मारने के लिए आए हैं। तिहार में इन माओवादियों ने खाना-पीना सब कुछ किया और जमकर नाचे भी थे। सुबह जब भीमा आया तो उस पर टूट पड़े। भीमा को मारने के लिए बुधराम ने इशारा किया था। हालांकि महिलाओं और आरक्षक की खुद की जीवटता ने मौत को मात दे दी।
पुलिस इस बात का दावा करती आ रही है कि उसका सूचना तंत्र मजबूत हुआ है। सवाल यह है कि दो दिनों तक पांच माओवादी रुके। लोगों के साथ खाना खाया और नाचे। इसके बाद भी पुलिस को भनक तक नही लगी। शुक्र है उस आरक्षक को जिसने निहत्थे होकर भी मुकाबला किया। इतना ही नहीं माओवादियों के मंसूबे को नाकाम कर दिया। कुआकोंडा में इस तरह की हुई वारदात से एक बार फिर दहशत का आलम है। पुलिस का कहना है कि स्मॉल एक्शन टीम माओवादियों की हाट बाजारों और नगरों में ही सक्रिय रहती है।
बुधराम मुलेर का रहने वाला है। लेकिन वह नहाड़ी आश्रम में पढ़ा है। उसने पढ़ाई दो साल पहले छोड़ी है। उसने एक लड़की से प्रेम के बाद शादी भी की। उसका लगातार यहां आना-जाना था। मुलेर के ही सभी माओवादी होने की बात कही जा रही है। भीमा को मारने आए पांच माओवादियों में से सिर्फ बुधराम ही उसका पहचानता है।